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Shailly Shukla

Drama Fantasy

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Shailly Shukla

Drama Fantasy

लालसा

लालसा

1 min
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इस जीवन के उस पार

समय के चक्र से परे

पाप और पुण्य के बोझ से मुक्त

जहाँ धूँधली होंगी सही और ग़लत की रेखाएँ


जहाँ ईश्वर भी प्रेम

और शाशन भी प्रेम

जहाँ प्रार्थी भी प्रेम

और प्रार्थना भी प्रेम


जहाँ भावनाएँ नहीं होंगी शब्दों की पराधीन

जहाँ बदल जाएँगी प्राथमिकताएँ

जहाँ दायित्वों के रहते भी रहेंगे

कुछ अल्हड़ पल..

जहाँ उतर जाएँगे नज़र से शर्त के चश्में

और नंगी आँखों से दिखेगा

केवल निर्दोष प्रेम !


जहाँ चार आँखों से बहेंगे संग-संग आँसू

या कि दो जोड़ी होंठ हँसेंगे साथ साथ

जहाँ कविताओं में, मैं तुम्हें नहीं

तुम मुझे लिखोगे !


जहाँ यादों के झरोखों पे मिट्टी नहीं होगी

रोज़ धूप की तरह बिखरेंगे सुनहरे पल

जहाँ बिन बताए मैं जो सुनना चाहती हूँ

तुम वो कहोगे !


जहाँ स्वप्न भी मैं, यथार्थ भी

संतोष भी मैं, स्वार्थ भी

एकांत भी मैं, परिवार भी

तुम्हारा देह भी मैं, प्राण भी !


बस मैं अभिलाषी हूँ केवल उस जहाँ की

बस वही.. वही मेरा स्वर्ग !




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