प्रस्ताव
प्रस्ताव
ख़ुशियों का तो पता नहीं,
न कभी किसी ने बाँटी ही!
लोग ठीक ही कहते होंगे,
दुगनी हो जाती होंगी ये यूँ…
यह फिर कभी आज़माएंगे!
हाँ, अपने इस ग़म को तुम,
बिना किसी हिचकिचाहट
बाँट सकती हो साथ मेरे...
किसी के दुःख-दर्द को यूँ,
देखा है मैंने आधा होते...!