साथी हाथ बढ़ाना
साथी हाथ बढ़ाना
जन्मभूमि, यही है हमारी कर्मभूमि,
इसका कर्ज़ चुकाना है,
स्वच्छंद निर्मल जैसा प्रकृति ने हमें सौंपा था,
वैसा ही इसे बनाना है।
गाँधी बापू का था यह सपना,
बना ना सके जिसे अभी तक हम अपना,
देना है जो बापू को श्रद्धांजलि ,
तो घर आँगन देश का होगा साफ करना।
अपने पाप धोने के लिये गंगा में डुबकी लगाते हैं,
अंतिम सांसे लेता है जब आदमी, उसे गंगाजल पिलाते हैं,
किन्तु उसी पावन, पवित्र और निर्मल गंगा में हम कूड़ा बहाते हैं,
पानी की गहराइयों में हम कूड़ा नहीं अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहते हैं।
धरती की गोद में हैं हम पल रहे,
आशियाने उसपर बन रहे, पड़ी है मैल की चादर परतोंपरत,
खींच लो मैल की चादर उसे स्वच्छ कर दो,
कचरे के वज़न से दब रही है धरती माँ,
उस वज़न को कम कर दो,
उसे भी खुली हवा में साँस लेने दो।
सभी को सफाई का पाठ पढ़ना होगा,
स्वच्छता के दोनों रंग हरे और नीले का अंतर समझना होगा,
खाद फिर इतना बनेगा, किसानों का दिल खिल उठेगा,
और तब एक बार फिर आर्गेनिक फसलों का ज़माना होगा।
बहेंगी जब स्वच्छंद हवाएं, देश हमारा निरोग होगा,
भुजाएं शक्तिशाली होंगी और देश शक्तिमान होगा,
नहीं जा सकते सभी सीमा पर, यह मुमकिन नहीं ,
किन्तु सफाई सैनानी बनकर, कर सकते हैं अपना कर्त्तव्य पूरा सभी।
साथी हाथ बढ़ाना है मिलकर देश को स्वच्छ बनाना है,
यह दलों का बँटबारा नहीं, सभी दलों को एक साथ मिलकर,
लक्ष्य को मंज़िल तक पहुँचाना है,
किसी एक का नहीं हर नागरिक का हो यह सपना,
स्वच्छता ही हो धर्म अपना।
आज है इतना प्रदुषण कि दम घुट रहा है,
उम्र से पहले ही इंसान बूढ़ा हो रहा है,
इंसान अपनी खुदगर्ज़ी में जी रहा है,
बस अपना काम हो जाय इतना ही सोच रहा है,
ऐसी संकीर्ण मनोवृत्ति वाले जब तक अपनी सोच नहीं बदलेंगे,
तब तक मुट्ठी भर लोग इस अभियान को पूरा नहीं कर सकेंगे,
अगर हर इंसान अपने हिस्से का काम करेगा तो,
वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश भी सोने सा चमकेगा।