सपने
सपने
जब उदास मन हो
और सोच पे बंधन हो
भावनाएँ भी साथ न दें
संवेदनाएँ पलट कर जवाब न दें
उस वक़्फ़ पे
सोच की रफ्तार को
जनून की हद तक ले चल
वक़्त की पतवार पे बहता चल
हवा-सा तू बहने दे
फूलों -सा महकने दे
श्रृंगार -सा सँवरने दे
बच्चों - सा मचलने दे
सोच को अंजाम देते हैं ये
तभी तो सपने कहलाते हैं ये
ख़ुदगर्ज़ी से दूर
हक़ीक़त से भरपूर
ज़िंदगी के ये नूर
घुंघरू -सी झँकार सुनाते हैं ये
तभी सतरंगी दुनिया के
अठरंगी सपने कहलाते हैं ये