बिगड़े हुए की तक़दीर बनते नही देखा है
बिगड़े हुए की तक़दीर बनते नही देखा है
गरीब, गरीब ही रह जाता है
अमीर और बढ़ता जाता है;
झूठ, पाखंड और फ़रेब का बोलबाला है,
बिगड़े हुए की तक़दीर बनते नही देखा है
सच और ईमानदारी को, अब पीर बनते नही देखा है।
हर कोई झूठ, कपट करके बादशाह बन जाता है
अब क़ातिल और अपराधी शहंशाह बन जाता है;
हर माँ-बाप को अपने मुँह का निवाला बेटे को देते हुए देखा है,
बिगड़े बेटे को सुधरते अब नही देखा है
बुढ़ापे में अपने माँ-बाप का, अब फ़िक़र करते बेटे को नही देखा है।
अब हर कोई अपने वायदों से मुकर जाता है
अब ज़रा सी बात पर अपनों पर बिफर जाते हैं;
अब किसी की बातों पर किसी को भरोसा नही होता;
अब अपनों को भी डूबने से बचाते नही देखा है
अब सीता की रक्षा करने वाला लक्ष्मण रेखा बनते नही देखा है।
अब किसी की इज्ज़त की किसी को क्या फ़िक़र है
अब बहन-बेटियों की इज्ज़त सरेआम नीलम होते देखा है,
अब गलत के खिलाफ़ किसी को आवाज़ उठाते नही देखा है
अब सच को बचाने श्रीकृष्ण भी नही आते;
अब द्रोपदी की चीर बढ़ते नही देखा है।
बिगड़े हुए की तक़दीर बनते नही देखा है!