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Dr. Om Prakash Ratnaker

Abstract Others

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Dr. Om Prakash Ratnaker

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ज़िन्दगी फिर शिकायत ना करें

ज़िन्दगी फिर शिकायत ना करें

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किसी ने मुझे बहुत ही वाजिब सा सिला दिया

कि ज़िन्दगी ऐसे जियो कि

ज़िन्दगी फिर शिकायत ना करे-२

मैं पूछता हूँ, 

अगर मुझे ज़िन्दगी से शिकायत हो तो मैं क्या करूं

उसने कहा कि लाखों गम क्यों ना हो

लोगों से ऐसे मिलो कि

फिर मिलने की चाहत ना रहे,

मैं पूछता हूँ,

अगर मुझे किसी से चाहत हो तो मैं क्या करूँ


चल ज़िन्दगी तुम्हीं से पूछता हूँ

कि किस तरह की ज़िन्दगी जी जाती है

किस तरह मैंने जिया है

कौन सी खुशियाँ मेरे हिस्से में तूने दी है

एक ख़ुशी तूने दी थी

फिर मुझे देने के बाद तुम्हें क्या हुआ

जिसके बिना तू भी ना रह पाया

तुमने उन्हें अपने पास बुला लिया

और अब दूसरी ऐसी कोई ख़ुशी देने का नाम नहीं ले रहा

तेरी रहमत, तेरी खुदाई

सबने मुझसे कर ली हैं जुदाई

अब मैं किस तरह जियूं ज़िन्दगी


फिर उसने कहा

कि किसी से इस कदर मोहब्बत करो

कि दूजा कोई ऐसी मोहब्बत ना करे

मैंने कहा कि मेरी मोहब्बत तुम हो,

इसका एहसास नहीं है तुम्हें

एहसास इसलिए नहीं है

ऐसा नहीं कि तुम जानती नहीं हो,

एहसास इसलिए नहीं है कि

तुम किसी से मोहब्बत करती हो...

बस इक बार मेरी मोहब्बत को एहसास कर के देखो

मैं कहता हूँ,

अगर मुझे तुमसे मोहब्बत हो तो मैं क्या करूं

उसने कहा,

ज़िन्दगी ऐसे जियो कि

ज़िन्दगी फिर शिकायत ना करे... 



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