तवायफ़ सी हो गयी ज़िन्दगी हमारी
तवायफ़ सी हो गयी ज़िन्दगी हमारी
तवायफ़ सी हो गयी ज़िन्दगी हमारी
जो इस महफ़िल से उस महफ़िल में भकटती है।
जो खुद कभी,
किसी के ख़ुशी का ज़रिया रहा
अब ना जाने किस ख़ुशी की तलाश में टहलती है।
इक़ ख्वाहिश अधूरी- अधूरी सी है
अब मंजिले और मुश्किलें साथ-साथ चलती है,
इरादों को तो रोक लूँ, मगर ये बुलंदी छूना चाहती है।
मैं अपने हस्र का क़त्ल कर दूँ,
मगर ये तमन्ना है जो मचलती है
अब ना जाने किस ख़ुशी की तलाश में टहलती है।
ये मेरी ख़्वाहिशें हैं, जो किस्तों में पूरा कर रहा हूँ
ये मेरी ज़िन्दगी है, जो हिस्सों में जी रहा हूँ,
सभी कहते हैं,
सब्र करो सब ठीक हो जायेगा
मगर इंतजार की इम्तहां तब हो जाती है
जब इंतजार खुद किसी का इंतजार करती है।
तवाएफ़ सी हो गयी है ज़िन्दगी हमारी
जो इस महफ़िल से उस महफ़िल में भकटती है...
