गीतिका
गीतिका
कलम उठाई जब भी मैंने, नारी का अधिकार लिखा
बर्बर दुनिया की रश्में, अरमानों का व्यापार लिखा।
सिसकन तक पर रोक लगी है, राहत की भी बात नहीं
तड़प तड़प कर मरती बेटी, कैसा यह संसार लिखा।
पायल, बिछुए, कंगन ,झुमके, गहनों में वह सिमट गयी
लाज शरम से जीती ऐसे, खामोशी श्रृंगार लिखा।
निर्भय होकर जीना चाहा, दिल की दिल मे पीर रही
जब टूटी कलियाँ शाखों से कितना हुआ प्रहार लिखा।
कई बेटियाँ जलती देखीं, नियम कई कानून कई
बढ़ते इन अत्याचारों पर, शब्दों का अंगार लिखा।
लाज न आती कुछ बेटों को, माँ का दिल छलनी करके
ऐसे नालायक बेटों को मैंने तो धिक्कार लिखा।।