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रेगिस्तान में नागफनी

रेगिस्तान में नागफनी

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मेरे पापा ने मुझे 

बचपन से समझाया 

कि माँ का सम्मान करो 

उन्हें प्यार दो 

जैसे वो तुम्हें देती है 

उन्हें अपना नौकर तो 

बिल्कुल मत समझो 


पहले तो मुझे कुछ 

समझ नहीं आया 

कि पापा ऐसा क्यों कहते है? 

क्योंकि दादी तो मम्मी से 

हमेशा कटी-कटी सी रहती थी 

कोई गलती हुई नहीं की 

कहना शुरू कर देती थी 

पराए घर से आई है 

समझने में कितना 

समय लगता है 

और माँ रुआंसी सी 

हो जाती थी 


मेरे कुछ बड़े होने पर 

मम्मी मुझे काम में 

हाथ बँटाने को कहती थी 

जबकि मेरी बहन मुझसे 

काफी बड़ी थी 

तो तब भी दादी मुँह 

फुलाकर बैठ जाती 

और चिल्लाने लगती 

कि पराए घर तो इसे जाना है 

इसे काम करने में लगा अपने साथ 

उसने तो घर में ही रहना है 


अब मैं शादीशुदा हूँ 

बीवी है, बच्चे है 

माँ है, पिताजी है 

पर सब में स्नेह है 

मेरी माँ ने कभी 

मेरी बीवी को 

दूसरे घर से आने का 

ताना नहीं दिया 

या महसूस नहीं होने दिया 


क्योंकि शायद वो जानती थी 

उस टीस को 

जो पल-पल उन्हें 

दादी से मिलती थी 

कि पराए घर से आई है 

उन्होंने कभी कोई 

कमी नहीं छोड़ी 

दादी की सेवा में 

घर के किसी भी सदस्य में 

सबकी फरमाइशों को पूरा किया 

अपनी पसंद को छोड़कर 


इसलिए जब उनकी बहू आई 

उन्होंने उसे अपनी ही बेटी माना 

गलती करने पर प्यार से समझाया 

उसे कभी महसूस नहीं हुआ कि 

वो पराई है 

या दूसरे घर से आई है 

इसलिए शायद वो 

मुझसे भी ज्यादा 

माँ के ज्यादा नजदीक है 


मुझे कोई शिकायत नहीं है 

क्योंकि पापा ने जो 

सिखाया बचपन से मुझे 

अब समझ में आता है मुझे 

कि कैसे एक लड़की अपनी 

जमीन को छोड़कर 

दूसरे की बगिया में आ जाती है 

वो रेगिस्तान में नागफनी 

सी होती है 

जिसे पानी की ज्यादा 

जरूरत नहीं होती 


बस उसे सिर्फ चाहिए होता है 

प्यार का स्पर्श, अपनापन 

उसी के सहारे वो 

उग जाती है विपरीत 

परिस्थितियों में भी 

और उस स्पर्श के लिए वो 

खुद को तुम पर समर्पित 

कर देती है मरते दम तक 


तुम्हारे ख़्वाबों को 

अपना बना लेगी 

अपने सपनों की अर्थी पर 

उसमें तुम्हारा सपना सजाएगी 

तुम्हारी पसंद को अपनी पसंद 

और न जाने क्या-क्या 


एक माँ, बहन, बीवी, बेटी, 

दोस्त, गर्लफ्रेंड, मौसी, टीचर 

न जाने कितने रूप कितने नाम 

तुम थक जाओगे सोचते-सोचते 

पर गिन नहीं पाओगे इनका कर्ज 


मैं जब भी माँ की 

आँखों में देखता हूँ 

मुझे दिखता है वो दर्द 

जो उन्होंने सहा हुआ है 

और जब मुझसे देखा नहीं जाता 

तो मैं अपना सर उनकी 

गोद में रख लेता हूँ 

सुकून मिलता है मुझे 


पर जब उनके सुकून का 

सोचता हूँ तो 

कमजोर हो जाता हूँ 

आखिर कब मिलेगा उनको सुकून 

मिलेगा भी या नहीं 


बस आप सब से यही 

गुजारिश है कि उनका 

साथ दे हमेशा 

उन्हें ये महसूस न होने दे 

कि वो पराई है आखिर 

उन्हें मान दे, सम्मान दे 


जैसे मैंने दिया अपनी 

माँ को, बहन को, बीवी को 

उनका हर कदम पर साथ दे 

उनको ये न सोचने

या महसूस होने दे कि

मैं जितना भी करूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

सबके लिए

क्योंकि वो तब भी आपका 

साथ देती है 

जब आप खुद भी 

कमजोर होते है...


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