कैसे बनूं बड़ा मैं जानता हूं
कैसे बनूं बड़ा मैं जानता हूं
कीचड़ में ही कमल खिलता है,
हाथ गंदे भी हो तो क्या फर्क पड़ता है।
जो पानी स्थिर रहता है,
वही सड़ता है, ज्ञान व भान न हो
वो ही जड़ता है।
बचपन में की गई मजदूरी,
रोजगार था जरूरी।
पढ़ न पाने की मजबूरी,
किताबों से रही दूरी।
अब मैं पढ़ना चाहता हूं,
कैसे बनूं बड़ा मैं जानता हूं।