जनक-जननी और जाया
जनक-जननी और जाया
जन्म लिया जब धरा पे तुमने, जननी ने जग दिखलाया
ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया
वे भूखे पेट सोए होंगे, पेट तुम्हारा भरने को
रात-रात भर जागे होंगे, सपने पूरे करने को।
देव तुल्य हैं चरणों में उनके, सचमुच स्वर्ग समाया
ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलायाय़
कड़वे शब्दों के न करना, दिल पर उनके वार कभी
और न करना जीवन में है, उन पर अत्याचार कभी।
क्योंकि वे तो सदा चाहते, सुखी रहे उनका जाया
ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया।
यदि बन श्रवण माँ बाप की सेवा तुम कर जाओगे
ईश्वर की भी कृपा रहेगी, सुखमय जीवन पाओगे।
रही सदा है मात-पिता की, शुभ आशीषों की छाया
ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया।
मूक पशु भी इंसानों के काम हमेशा आते हैं
मरने के उपरान्त बहुत कुछ दुनिया को दे जाते हैं।
शत्-शत् नमन करो उनको, जिसने इंसान बनाया
ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया।