श्रीमद्भागवत - ८; भगवन के अवतारों का वर्णन
श्रीमद्भागवत - ८; भगवन के अवतारों का वर्णन
सूतजी कहें, सृष्टि के आदि में
लोक निर्माण करूं, प्रभुमन में आए
पुरुषरूप ग्रहण किया उन्होंने
जिसमें सभी सोलह कलाएं।
दसों इन्द्रियां थीं उस रूप में
पांच भूत, एक मन था उसमें
नाभि से उनकी कमल प्रकट हुआ
ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए जिसमें।
भगवान का जो ये रूप था उसमें
हजारों पैर, हजारों भुजाएं
सहस्रों सिर, हजारों मुख उसमें
हजारों आँखें और नासिकाएं।
हजारों मुकुट, वस्त्र और कुण्डल
इस रूप को नारायण कहते हैं
इसी पुरुष रूप नारायण से
सारे अवतार प्रकट होते हैं।
इसी के छोटे अंश से जन्मे
सारे देवता, पशु और पक्षी
और इसी नारायण से ही
सृष्टि हुई हम सब मनुष्यों की।
पहला अवतार था सनक,
सनंदन, सनातन और सनत्कुमार का
अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया
चार भाईओं का ये अवतार था।
दूसरी बार रसातल में जब
पृथ्वी सारी ये चली जाये
उसको निकल लाने की खातिर
सूकर रूप में प्रभु थे आये।
तीसरी बार ऋषि मुनियों को
बहुत सारा तब ज्ञान मिला था
इस जनम में, ऋषिओं में श्रेष्ठ
नारद का अवतार लिया था।
चौथे अवतार में नर और नारायण
मूर्ति के गर्भ से आये
पांचवें अवतार में सिद्धों के स्वामी
कपिल मुनि के रूप में आये।
अनुसुइया के वर मांगने पर
पुत्र रूप हों, वो प्रभु से कहें
छठा अवतार दत्तात्रेय का था
अत्रि मुनि की संतान वो हुए।
सातवां अवतार यज्ञ का था
रूच की पत्नी माँ आकूति थीं
यम के साथ में रक्षा की थी
स्वयंभूमनु मन्वन्तर की।
आठवां अवतार ऋषभदेव का
नाभि की पत्नी मेरु देवी से
नवीं बार आये पृथु रूप में
जब ऋषि करें प्रार्थना उनसे।
इस अवतार में दोहन की औसधियाँ
जो भरी हैं पृथ्वी पर सारी
मत्स्य अवतार दसवां हुआ था
उठाई नौका रुपी पृथ्वी भारी।
समुन्द्र मंथन जब हुआ था
ग्यारहवां अवतार कच्छप का लिया
मंदराचल की मथानी बनायी
पर्वत को ऊपर धारण किया।
बारहवीं बार धन्वंत्री रूप में
अमृत ले प्रकट हुए समुन्द्र से
तेहरवां अवतार मोहिनी रूप में
अमृत पिलाया देवताओं को छल से।
चौदहवां अवतार नरसिंह रूप का
हिरण्यकशिपु वध किया नखों से
पन्द्रहवाँ वामन रूप धारण किया
तीन पग पृथ्वी मांगी बलि से।
जब राजा बने ब्राह्मणों के द्रोही
सोलहवां परशुराम अवतार लिया
फरसा लेकर निकले पृथ्वी पर
इक्कीस बार क्षत्रिओं को शून्य किया।
सत्यवती के गर्भ से जन्मे
व्यास जी सत्रहवें अवतार हैं
वेदों की बना दीं शाखाएं
शास्त्र जो वेदों का सार हैं।
अठारहवाँ अवतार राजा राम का
उन्नीस बीस , बलराम, कृष्ण के
अजान के पुत्र रूप में आएं
बुध अवतार हो मगध देश में।
जब कलयुग का अंत समीप हो
बाईसवां अवतार प्रभु लें
विष्णुयश नाम के ब्राह्मण के घर
अवतरित होंगे कल्कि रूप में।
सनकादि कहें, ऋषि मुनि देवता
प्रजापति भी हैं जो सारे
सब के सब भगवन के अंश हैं
पुत्रों की तरह हैं उनको प्यारे।
जब भी लोक व्याकुल होते
दैत्य अत्याचार हैं करते
उनकी रक्षा करने हेतु
प्रभु अनेकों रूप हैं धरते।
स्थूल रूप से परे प्रभु का
सूक्षम रूप जो नजर न आये
ना उसका आकर कोई है
किसी को ना पता लग पाए।
आत्मा जब परविष्ट हो उसमें
तब ये कहलाता जीव है
बार बार जन्म हे लेता
मरता,फिर हो जाता सजीव है।
प्रभु अपनी अमोघ लीला में
सृजन, पालन, करते संहार हैं
भगवान की शक्ति तो अनंत है
लीला उनकी अपरम्पार है।
वेदव्यास ने रची भागवत
उनसे गृहण की उनके पुत्र ने
वेदों का संग्रह ये ग्रन्थ है
कलयुग के लिए ज्ञान है इसमें।
शुकदेव ने परीक्षित को सुनाया
मैं भी वहां बैठा सुनता जाऊं
अपनी बुद्धि से जो ग्रहण किया
वो सब मैं अब तुम्हे सुनाऊँ।