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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

रामायण ६६ ;श्री राम द्वारा सीता का त्याग

रामायण ६६ ;श्री राम द्वारा सीता का त्याग

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शिव कहें ये पार्वती से 

राम चरित्र की सात सीढ़ीयां 

ये सड़कें भक्ति पाने की 

पाप हरें, तर जाएं पीढ़ीयां। 


जन्म मरण का जो रोग है 

संजीवनी बूटी है ये उसकी 

ज्ञान का ये ही मार्ग है 

मुक्ति मिले, जो कथा सुने राम की। 


गरुड़ पूछें काकभुसुंडि से 

अब सुनाओ मुझे वो चरित्र 

अयोध्या छोड़ स्वर्ग को गए 

यज्ञ किये थे जो पवित्र। 


काकभुसुंडि कहें, हे गरुड़ जी 

अयोध्या पर वर्षों राज किया था 

निवास किया, किये अनेक चरित्र 

जानकी ने भी साथ दिया था। 


एक दिन गए गुरु के आश्रम 

काशी जाने की आज्ञा ली उनसे 

गंगा जी को प्रणाम किया वहां 

शिव आराधना की थी मन से। 


ब्राह्मणों को वहां दान दिया था 

अयोध्यापुरी लौट आये तब 

सोचें अब अवधि बस सौ वर्ष की 

अशवमेघ यज्ञ करलूं अब। 


एक दिन सभा में बैठे हुए थे 

वहां पर एक ब्राह्मण आया 

सूर्यवंश अब डूब रहा है 

कड़वा वचन सबको सुनाया। 


रघु, दिलीप, राजा सगर जी 

इतिहास प्रतापी राजाओं से भरा 

कभी अवध में हुआ न ऐसा 

पिता के जीते पुत्र हो मरा। 


सुनकर बहुत व्याकुल राम थे 

सोचें ब्राह्मण का पुत्र क्यों मरा 

आकाशवाणी हुई कि शूद्र तपस्या करे 

पुत्र मृत्यु का यही कारण बना। 


तुरंत सजाकर रथ निकल पड़े 

बाण से फिर मारा था उसको 

भक्ति रुपी वरदान दिया उसे 

प्रायश्चित के लिए चल दिए तीरथ को। 


बालक ब्राह्मण का जीवित हो गया 

रामचंद्र नगर में आये 

दूत रात दिन विचरें अयोध्या में 

प्रजा का समाचार सुनाएं। 


एक दिन अलग अलग दूतों से 

समाचार थे पूछ रहे 

एक दूत वहां कुछ न बोला

बहुत पूछा तो वो ये कहे। 


एक धोबी कहे अपनी स्त्री को 

चली जा, अब नहीं तेरा ये घर 

मैं राम नहीं, जिन्होंने फिर रखा 

सीता को, जो रही रावण के घर। 


दूत के वचन ह्रदय में रखे 

रात में देखा स्वपन वही 

विचार किया त्यागूँ सीता को 

मर्यादा यही वेदों ने कही। 


धर्म का लोप न होगा इससे 

गए वो सीता जी के पास 

कहा, छाया पृथ्वी पर छोडो 

पुनीत स्थान पर करो निवास। 


सीता जी आकाश में गयीं 

पता चला ये ना किसी को 

सुबह उठे, लक्ष्मण को ये कहा 

वन में ले जाओ सीता को। 


सभी भाई घबरा गए सुनकर 

शत्रुघ्न राम को ये कहें हैं 

सीता तो जगत की माता 

किस कारण उनको त्याग रहे हैं। 


प्रभु बोले अगर वचन न मानो 

मेरे शरीर में प्राण न रहें 

भारत कहें सीता तो सती है 

अनुसरण उनका पतिव्रता स्त्री करें। 


आप के बिन पल भर न रहे वो 

राम कहें, ये सुँदर नीति 

पर राजा को चाहिए कि वो 

रक्षा करे मर्यादा, धर्म की। 


फिर उन सबको वो कहा जो 

दूत ने उनको था सुनाया 

लक्ष्मण को थे फिर बोले तो 

रथी वहां था रथ ले आया। 


गंगा तट पर रथ था पहुंचा 

लक्ष्मण व्याकुल, बहुत दुखी वो 

आकाशवाणी हुई छोड़ जाओ इन्हे 

कुछ न होगा सीता जी को। 


लक्ष्मण करें वंदना सीता की 

फिर लौट आये अवध, अपने घर 

इतने में ऋषि वाल्मीकि जी 

घूमते फिरते आये वहां पर। 


वाल्मीकि पूछें सीता से 

किस कारण तुम वन में आयी 

कहें सीता, जनक पुत्री मैं 

रामचंद्र मेरे गोसाईं। 


ना जानूं किस कारण त्यागा 

लक्ष्मण गयें हैं छोड़ के यहाँ 

मुनि ने योग से देख लिया सब 

कहा चलो तुम आश्रम है जहाँ। 


पिता तुम्हारे मेरे शिष्य 

आदरसहित आश्रम ले आये 

ज्ञान उपदेश दिया सीता को 

तरह तरह की कथा सुनाएं। 


लक्ष्मण जब अवधपुरी पहुंचे 

माताओं ने वृतांत सुना सब 

दुखी हुईं, तब राम जी आये 

माताओं को समझाया तब। 


ज्ञान दिया जब, तो वो बोलीं 

पुत्र समझ सब भूल गयीं थीं 

राम की अविरल भक्ति पाकर 

शरीर छोड़ वो स्वर्ग गयीं थीं। 


 







 

 

 









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