रामायण ३३;बालि वध
रामायण ३३;बालि वध
अग्नि को मान साक्षी
मैत्री की कसमें खाईं
लक्ष्मण जी ने राम की सारी
सुग्रीव को कथा सुनाई।
सुग्रीव कहें देखा था मैंने
आकाश मार्ग से जाते हुए
सीता जी विलाप कर रहीं
कुछ वस्त्र यहाँ गिरा दिए।
वस्त्र जब देखे प्रभु ने
मन में दुःख हुआ था उनको
तब राम पूछें सुग्रीव से
क्यों रहते इस पर्वत पर, कहो।
सुग्रीव बोले हम दो भाई हैं
मैं छोटा, बालि बड़ा है
एक दिन रात में हमने देखा
द्वार पर एक राक्षस खडा है।
मय दानव का बेटा मायावी
ललकारे बालि को जो
बालि उसको मारने दौड़ा
गुफा में छुप गया भाग कर वो।
मैं भी बालि के साथ था
बालि मुझसे कहने लगा तब
पंद्रह दिन में मैं ना आऊं तो
समझ लेना ख़त्म हो गया सब।
बालि गया गुफा के अंदर
मैं बाहर पहरा था दे रहा
तीस दिन जब बीत गए
देखा गुफा से खून बह रहा।
सोचा बालि मारा गया है
राक्षस मुझको भी न मारे
बंद किया मुंह गुफा का मैंने
पत्थर रख दिया गुफा के द्वारे।
वापिस आया जब राज्य में
मंत्रियों ने राजा बनाया
क्रोधित हुआ मुझे सिंहासन पर देख
जब बालि घर वापिस आया।
उसने राक्षस को मार दिया था
वो सोचे धोखा मैंने दिया है
मारने को उसको गुफा बंद की
राज्य के लिए ये सब किया है।
शत्रु समान उसने मारा मुझे
छीन लिया मेरा जो सब था
स्त्री को भी मेरी छीना
जहाँ जाऊं उसका भय लगता।
मतंग मुनि के शाप के कारण
बालि यहाँपर नहीं आ पाता
फिर भी उसका इतना भय है
उसके नाम से मैं डर जाता।
राम को क्रोध तब आया था , कहा
बालि को बाण से मार के आऊं
तुम्हारा दुःख अब मेरा दुःख है
मित्रता का धर्म निभाऊं।
सुग्रीव कहें बालि बलवान है
इतनी आसानी से न मरे वो
भगवन ने अपना बल दिखाया
तब उनपर विश्वाश करें वो।
सुग्रीव ने बल पाया प्रभु से
जा कर बालि को ललकारा
तारा समझाए राम मनुष्य ना
पर वो था घमंड का मारा।
तिनके समान माने सुग्रीव को
घूंसे से किया प्रहार
व्याकुल होकर सुग्रीव भाग गया
प्रभु से बोले, मुझे देगा मार।
प्रभु बोले तुम दोनों एक से
शकल तुम्हारी एक समान
भ्रम में कहीं तुमको न मार दूँ
इसी लिया मारा नहीं बाण।
स्पर्श किया सुग्रीव को हाथ से
शरीर कर दिया वज्र समान
एक फूलों की माला डाल दी
बृक्ष की आड़ में खड़े भगवान।
लड़ने दोबारा सुग्रीव को भेजा
ह्रदय में बालि के मारा बाण
बालि पृथ्वी पर गिर पड़ा
बोला, जब पास आये भगवान्।
छिपकर क्यों मारा है मुझको
और मारा मुझे किस दोष में
मुख पर उसके कठोर वचन थे
पर मन रम रहा प्रभु की सोच में।
राम कहें स्त्री छोटे भाई की
बहन समान तू उसको जान
और पुत्र की स्त्री को
कन्या के समान तू मान।
जो बुरी दृष्टि से इन्हे देखे
पाप न लगे, जो उसको मारे
मारना चाहते थे तुम सुग्रीव को
जानो तुम, वो मेरे सहारे।
याचना करे बालि रघुनाथ से
आखिरी समय है मेरा आया
पुत्र अंगद को राम को सौंपा
शरीर त्याग परमपद पाया।
तारा हुई थी बहुत व्याकुल
अज्ञान हरा प्रभु, ज्ञान दिया
बालि के मरने पर उसका
मृतक कर्म सुग्रीव ने किया।
लक्ष्मण से कहें रघुनाथ जी
राजतिलक सुग्रीव का कर दो
वानरराज बने सुग्रीव और
युवराज पद मिला अंगद को।
