रामायण ५८;राम राज्य का वर्णन
रामायण ५८;राम राज्य का वर्णन
अयोध्या नगरवासी हर्षित हुए
दूर हुई सारी विषमता
सब चलें अनुसार धर्म के
वेद मार्ग पर चलती जनता।
सभी लोग रहे वहां प्रेम से
धर्म का पालन करे है हर कोई
नीति का पालन करते हैं सब
दैहिक, भौतिक ताप न कोई।
धर्म है अपने चारों चरण में
स्वपन में भी कोई पाप नहीं है
सभी हैं मोक्ष के अधिकारी
पीड़ा न कोई, शाप नहीं है।
छोटी अवस्था में मृत्यु नही
सभी सुंदर, न कोई मलीन है
दरिद्रता कहीं भी नहीं
न दुखी, न कोई दीन है।
सभी लोग हैं धर्मपरायण
भूखा वहां कोई नहीं सोता
कपट, चतुराई किसी में नहीं
चोरी डाका कभी नहीं होता।
एक पत्नीव्रत सभी पुरुष हैं
पतिहित करने वाली सब नारीं
किसी को वहां दंड नहीं मिलता
साधुओं जैसी प्रजा है सारी।
वृक्ष सदा हैं फूलते फलते
संग रहते जीव हैं सारे
भरपूर दूध देतीं हैं गाय
जरुरत से मेघ वर्षा करें।
धरती सदा खुशहाल है रहती
पर्वत पर मानिओं की खानें हैं
नदियां शीतल जल बहातीं
समुन्द्र मर्यादा जानें हैं।
रतन किनारों पर समुन्द्र के
तालाब सभी हैं कमल से भरे
चन्द्रमाँ शीतल किरणें दे
सूर्य ज्यादा ताप न करे।
राम राज्य में सब हर्षित हैं
ना अपराध, न कोई लोभ करे
त्रेता लगे जैसे सतयुग है
अनीति करने से हर कोई डरे।
राम ने कई अशवमेघ यज्ञ किये
और कई अनुष्ठान किये
गुरु कृपा से सब पूरे हुए
ब्राह्मणों को अनेकों दान दिए।
सीता चरण सेवा करें राम की
सदा उनके अनुकूल रहें
घर में दास, दासी बहुत पर
अपने हाथों से सेवा करें।
आज्ञा का अनुसरण करें वो
जो भी रामचंद्र कहें
सब सासुओं को एक सा समझें
उनकी सेवा में मगन रहें।
भाई भी सभी अनुकूल हैं
राम की करते सेवा वो
रामचंद्र भी प्रेम करें उन्हें
सिखलायें नीति है जो।
नगर में लोग बहुत हर्षित हैं
सभी भोग मिलें उनको
राम करें हैं मनुष्य लीला ये
माया छू न सके उनको।
प्रात सरयू में स्नान वो करते
ब्राह्मणों के साथ में बैठें वो
वेद पुराणों की कथा सुनते
लोग प्रणाम करें उनको।
भाईओं संग वो भोजन करते
हनुमान जी सेवा करें
भाई कपि से विनती करें जब
वो प्रभु महिमा वर्णन करें।
हर घर में पुराणों की कथा हो
रामचरित कहे जाते
नारदादि और सनकादि मुनि
राम से नित्य मिलने आते।
महल सुंदर और मनोहर
चित्रमाला है घर घर में
रामचरित उनमें अंकित जो
मुनियों का भी मन मोह ले।
घर घर में एक पुष्पवाटिका
भांति, भांति के फूल खिले
सुँदर हैं बाजार वहां पर
सभी वस्तुएं मुफत मिलें।
स्त्री पुरुष बच्चे और बूढ़े
सभी सुखी, सदाचारी वहां
उत्तर में सरयू नदी बहती
जल निर्मल बड़ा गहरा।
नदी किनारे निवास करें मुनि
घाट बहुत ही सुंदर हैं
नदी के तट पर सब तरफ ही
देवताओं के मंदिर हैं।
झुण्ड के झुण्ड पेड तुलसी के
मुनियों ने लगाए जहाँ
राम नाम को भजें हैं सभी
गुणगान प्रभु का करें वहाँ।
विद्या ने अविद्या को भगा दिया
पाप कोई भी ना करे
काम क्रोध सब ख़तम हो गया
सुख समृद्धि वहां रहे।
एक दिन भाईओं सहित प्रभु
उपवन में थे वो जाएं
हनुमान भी साथ में उनके
सनकादि मुनि आये।
|
लगें वो बालक, उम्र बहुत पर
लग रहे जैसे वेद ये चार
बालक रूप को धारण करके
देखें प्रभु का ये अवतार।
प्रभु ने देखा, दंडवत किया
बिछा दिया पीताम्बर अपना
प्रभु तरफ वो देख रहे हैं
जैसे देखें कोई सपना।
जल नेत्रों में आया प्रभु के
परम मनोहर वचन कहे
मोक्ष मिले अगर संग संत का
नरक, अगर संग कामी रहे।
मुनियों के दर्शन करने से
पाप नष्ट हैं हो जाते
मुनि स्तुति करें प्रभु की
अविरल प्रेम भक्ति पाते।
