STORYMIRROR

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

रामायाण ५४ सीता अग्निपरीक्षा

रामायाण ५४ सीता अग्निपरीक्षा

3 mins
69


लक्ष्मण से रघुनाथ कहें फिर

सेना लेकर नगर में जाओ

विभीषण का तुम राजतिलक करो

वहां का समाचार ले आओ।


पिता वचन के कारण मैं ना

नगर में साथ चलूँ तुम्हारे

फिर उन्होंने बुलाया हनुमान को

हर्षित होकर वो पधारे।


जानकी जी से हाल सब कहो

राम कहें, तुम लंका जाओ

उनकी कुशल मंगल पूछकर

उनका समाचार तुम लाओ।


सीता को प्रणाम किया कपि

जानकी ने पहचान लिया

भाइयों के बारे में पूछें

कपि उन्हें समाचार दिया।


रावण का है अंत हो गया

राजतिलक विभीषण का हुआ

जानकी जी कहें, राम भक्त तुम

और दें उन्हें बहुत दुआ।


अंगद, विभीषण से कहें राम जी 

हनुमान के साथ तुम जाओ

सब लोग आदर और प्रेम से

 जानकी जी को यहाँ ले आओ।


राक्षसियों को गहने वस्त्र दिए

सीता को तैयार करें वो

सीता पालकी में बैठी हैं

रीछ वानर आतुर दर्शन को।


हँसे राम कहें, मेरी मानो

सीता जी को पैदल ले आओ

देखें वानर माता हो जैसे

इस मन से अब इन्हे मिलाओ।


रखा था सीता को अग्नि में

उन्हें प्रकट अब करना चाहें

लीला कर कुछ कड़े वचन कहे

सीता कहें लक्ष्मण, आग ले आओ।


लक्ष्मण की आँखों में जल भरा

प्रभु को वो कुछ कह नहीं पाए

सीता को प्रणाम करें वो

उनकी आज्ञा ले, अग्नि जलाएं।


सीता कहें, हे अग्नि देव जी

यदि मन वचन और कर्म से

ह्रदय में रघुनाथ हैं मेरे

और कोई न मेरे मन में।


तो मेरे मन की गति जानकर

चन्दन की तरह शीतल हो जाएं 

ये कह कर प्रवेश कर गयीं

अग्निदेव प्रकट हो आये।


छायामूर्ति अग्नि में जल गयी

अग्निदेव सीता का हाथ ले

करा समर्पित रामचंद्र को 

सभी देवता आशीर्वाद दें।


ब्रह्मा करें स्तुति राम की

तभी वहां दशरथ भी आये

देख कर राम की सुंदर मूरत

नैनों में जल भर भर जाये।


दिया आशीर्वाद राम लखन को

देव लोक में चले गए वो

तभी वहां इंद्र आ गए ,कहें

क्या करूँ मैं, आप आज्ञा दो।                         


राम कहें वानर और भालू

मरे हैं मेरे हित के लिए ये

इंद्र से ये राम हैं कहते

जिला दो इन्हे, कृपा करो ये।


अमृत वर्षा इंद्र कर दी

वानर, भालू जीवित हो गए

पर राक्षस कोई जीवित न हुआ

राम में वो पहले ही मिल गए।


वानर भालू लीला के आधीन थे

प्रभु, इच्छा से जिला दिया उन्हें

रावण ने भी गति थी पाई

प्रभु परमपद अपना दिया उन्हें।


शिव भी आकर कहें राम को

निवास करो ह्रदय में तीनो

फिर आऊँगा दर्शन करने

अयोध्या में जब राजतिलक हो।


विभीषण विनती करें राम से

घर को मेरे करो पवित्र

राम कहें भरत याद आएं मुझे

जल्दी मिलूं, यत्न करो मित्र।


विभीषण तब गए राजमहल में

पुष्पक विमान वो ले आये

राम कहें विमान में भरकर

कपडे, मनियाँ सब लुटाएं।


जिसको जो चाहिए ले जाता

वानर समझें फल मनियों को

मुँह में लेकर फेंक देते हैं

हँसी आती है उन तीनों को।


राम करें विनोद वानरों से

कहें जीता मैं, आप के बल से

घर जाने की आज्ञा मैं देता 

खुश हूँ बहुत मैं आप के दल से।


सब वानर आदर से बोले

प्रभु प्रेम में विह्वल थे सब वो

मच्छर क्या हित करे गरुड़ का

इच्छा घर जाने की न उनको।


पर ये तो आज्ञा थी राम की

हर्ष, विशाद से रोएं मन में

चल पड़े वो अपने घर को

राम भजन करें जाते हुए वन में।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics