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Monika Baheti

Abstract

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Monika Baheti

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क्या मै बदल रही हूँ

क्या मै बदल रही हूँ

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आज मै अपने दोस्तो से मिली...

उन्होंने अचानक कहा तुम बदल रही हो.. 

क्या मै सच मे बदल रही हूँ...

हाँ कही ना कही मुझे लग रहा है...

मै अपने आप को खो रही हूँ...

मेरे दोस्त पूछते हैं मुझसे... 

तेरी चुलबुल सी हँसी कहा खो गयी...

तेरी वो पागल बाते ओर शैतानियां कहा खो गयी...

क्या बोलू मै उनको.....

बस यू समझ लो मै मोन हो गयी...

हालातो ने मुझे ऎसा मारा की मै कही खो गयी... 

हज़ारो सवाल उठते है मन मे.. 

उन्हे मै खोज रही हूँ...

ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल है...

इसे अकेले जीना आसान नहीं...

अकेलेपन की तन्हाई मुझे रोज शताती है...

ये मुझे ज़िन्दगी को जीने की सीख सीखाती है...

मैं सुकुन की तलाश मे नदी का किनारा खोज रही... 

दुनिया से दूर मै एक कोने मे छुप रही... 

भीड से मुझे अब डर लगने लगा...

मै बस अपने आप को एक कमरे मे बन्द करने लगी... 

मै अब अपनी यादो मे जीने लगी... 

उन यादो के सहारे ज़िन्दगी गुजारने लगी...

कभी कभी लगता है ये यादे हकीकत लगने लगी... 

मै अब उन्ही मे खुश रहने लगी... 

हर दर्द को मै अब दिल मे दफ़न करने लगी.. 

हाँ मै खुद को खो जरुर रही हूँ...

ज़िन्दगी को बस उसके हिसाब से जीना सीख रही हूँ...


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