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Pramod Bhandari

Drama

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Pramod Bhandari

Drama

सरहद मुझे पुकारती

सरहद मुझे पुकारती

1 min
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आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।


भरत भारती का मैं बेटा

शेरों के संग पला बढ़ा हूं,

माँ का मान बचाने को मैं

इन शिखरों पर सदा चढ़ा हूं ।

अरिदल चढ़ आया सीमा पर

विकल हुई माँ भारती,

आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।


नन्दन-वन के शेरों को

एक गीदड़ ने धमकाया है,

घर में बैठे-बैठे उसने

अपना काल बुलाया है ।

उस कायर की करतूतों को

सारी दुनिया धिक्कारती,

आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।


उसके सीने की चौड़ाई

मेरी गोली नापेगी,

ऐसी दूंगा मौत, नरक में

उसकी रुह भी कांपेगी ।

‘बन जाऊंगी काल’

मेरी बन्दूक की नाल दहाड़ती,

आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।


बनकर लावा अब फूटेगा

ठंडा बर्फ हिमालय का,

मेरा शोणित घोष करेगा

भारत माँ की जय-जय का ।

अरिमुंडों की माला के संग

भाव भरी हो आरती,

आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।


काश्मीर की क्यारी को अब

अपने खूँ से सींचूंगा,

कारगिल के रश्मि-रथों को

अन्त समय तक खींचूंगा ।

अब तो मुझको बनना ही है

कृष्ण सरीखा सारथी,

आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।


माँ के चरणों के वन्दन को

अपना शीश चढ़ा दूंगा,

जननी का जो दूध रगों में

उसका कर्ज चुका दूंगा ।

चलती जो हर सांस, इसी

माता ने मुझे उधार दी,

आज विदा की वेला आई

सरहद मुझे पुकारती ।



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