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Pramod Bhandari

Abstract

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Pramod Bhandari

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वोटों का त्यौहार गज़ब

वोटों का त्यौहार गज़ब

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सत्ता का खुमार गज़ब

वोटों का त्यौहार गज़ब।


वादों, नारों और भाषणों

की होती बौछार गज़ब,

खींचातानी, शोर – शराबा

ख़बरों का बाज़ार गज़ब।


जनता सोती तो होता है

वोटों का व्यापार गज़ब,

नौकर-नेता, मालिक बनकर

करते भ्रष्टाचार गज़ब।


जग जाती जब सारी जनता

बनती है सरकार गज़ब,

लोकतन्त्र में मालिक जनता

जनता का अधिकार गज़ब।


दगाबाज़ और मक्कारों का

होता बंटाधार गज़ब,

उम्मीदें जिससे बंध जाए

मिलता उसको प्यार गज़ब।


सत्ता का खुमार गज़ब

वोटों का त्यौहार गज़ब।


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