नारी है वो
नारी है वो
कभी बहन तो कभी बेटी
कभी माँ तो कभी सहेली।
खुद दर्द सह के,
वो एक नई जान को जन्म देती है।
अपना घर छोड़ के,
वो दूसरे घर को अपना लेती हैं।
त्याग कर कर के भी,
कमजोर है तू,ये ताने सुन लेती है।
पर जान लो यह भी कि
गर दुर्गा का रूप है वो,
तो एक काली भी उसमें है।
सिर्फ अपनों के लिए ही नहीं,
वह अपने लिए भी लड़ सकती है।
खिलौना समझोगे गर नारी को,
तो खेल वो भी दिखा सकती है।
नारी है वो, वो पत्थर को भी पिघला सकती है
नारी है वो, वो हर ऊँचाई को पा सकती हैं।