कोरोना का प्रभाव
कोरोना का प्रभाव
कल जो कचरों की ढेर में दबी थी
आज खुले आसमान तले जी रही है
कल कि वह बंजर ज़मीन
आज खिलखिला कर हंस रही है
यह पल-पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई है ।
पानी की वह लहरें गुनगुना रही हैं
उसमें बसी जिंदगी खुशी से झूम रही है
कल का वह दूषित पानी
आज प्रतिबिंब-सा स्वच्छ दिखाई पड़ता है
यह पल-पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई है ।
वह खंभों से खड़े पेड़ फल-पत्तियों से भर गए हैं
सूखी झाड़ियों में फूल खिल महक रहे हैं
बाग बगीचों में तितलियां मौज कर रही हैं
आसमां में चिड़ियों की चहचहाहट गूंज रही है
यह पल पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई है ।
गाड़ियों से निकलता वह काला ज़हर
हवाओं में मचाए हुए था कहर
आज हवाएं भी कुछ हरकत सी कर रही है
शायद यह भी खुशियों की करवटें ले रही हैं
यह पल पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई है ।
करोना का खौफ सब पर छाया हुआ है
साए की तरह अपना बसेरा फैलाए हुआ है
कल जो चीज़ेंं , जो काम बेझिझक होती थी
आज वो करने से पहले लाख बार सोची जाती हैं
यह पल पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई है ।
कल का बिछड़ा परिंदा आज घर लौट रहा है
यह करोना अपनों को अपनों से मिला रहा है
भटके उस राही को मंजिल का सहारा मिल रहा है
अधूरे छूटे रिश्तो को फिर पूरे करने का मौका मिल रहा है
यह पल पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई है ।
यह बदलाव कहीं ना कहीं ज़रूरी था
पर हां यह ज़रिया शायद गलत था
कुदरत का भी तो यूं खुल के हंसना लाज़मी है
शायद यह समझ जाना अब हमारे लिए भी ज़रूरी है
यह पल-पल बदलती दुनिया
क्या से क्या बन गई।