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Arpan Kumar

Abstract

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Arpan Kumar

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'दिल्ली में ओरछा के गुलाब'

'दिल्ली में ओरछा के गुलाब'

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ओरछा के श्मशान में 

आराम कर रहे हैं हमारे पुरखे 

उनके सिरहाने खिले गुलाब

उनकी साँसों मे खुशबू बिखेर रहे हैं 


तारों में तब्दील हुए लोग 

हमारी स्मृतियों में लौटते हैं

और आकर जब-तब 


इस धरा पर 

रूप धर नए-नए 

गुलाबी-गुलाबी 

कर जाते हैं हमें

कई-कई बार


मैं ओरछा के गुलाबों की 

कुछ कलमें

दिल्ली ले आता हूँ 


बख़्शने वाले ने 

इतनी ताक़त बख़्शी है 

गुलाब को

कि वह चाहे तो

मुर्दों को ज़िंदा कर दे,


समय और स्थान की सीमा को 

बताते हुए धता

खिल सके स्वयं

कहीं भी, किसी भी समय 

अपनी मर्ज़ी मुताबिक 


और चाहे तो 

बन कोई टाइम-मशीन

जो पहुँचा दे

वर्तमान को विगत में 

और करके कोई ज़ादू 


दिल्ली को बना दे ओरछा

बेशक, कुछ देर

के लिए ही सही !


दिल्ली में खिलना 

ओरछा के गुलाबों का

खिलना है


बुंदेलखंड की मिट्टी और गंध का

इंद्रपस्थ की धूप और पानी में,

नफ़रत और हिंसा की 

अरसे से जमी हुई धुंध को 


चीरते हुए

खिलना है ज्यों

प्रेम और विश्वास की

किरणों का। 


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