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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

पल..प्रतिपल..

पल..प्रतिपल..

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मनुष्य तो बदलता रहा है...
केव मैन से लेकर आज का मनुष्य...
केव मैन का क्या?
वह तो बेहद भोला था...
अपने काम से काम रखने वाला...

लेकिन फिर वक़्त बदलने लगा...
धीरे धीरे समझ बढ़ी...
ज्ञान बढ़ा...
लॉजिक बढ़ा...
स्वार्थ बढ़ा...
इच्छा बढ़ी...
लालसा बढ़ी...
सत्ता बढ़ी.…
सत्ता का नशा बढ़ा...

केव मैन घर से बाहर जाता...
शिकार करता...
खाने के लिए कुछ न कुछ ले आता...
धीरे धीरे एवोल्यूशन होता गया..
दौड़ने और शिकार के लिए शरीर मजबूत होता गया...
साथ मे दिमाग भी...

केव में रही केव वुमन पीछे बाकी काम संभालती रहती...
केव की सफाई...
जो भी चीजें लायी गयी उनको खाने के लिए तैयार करना...
उसका मनोरंजन करना.....
और भी छोटे छोटे कई काम...

धीरे धीरे वक़्त बदलता गया...
आदमी फिर बदलता रहा...
वेद से पुराण...
साइन्स से मैथ्स...
लिटरेचर से स्पेस साइन्स... 
अर्थशास्त्र से स्टेटिस्टिक्स... 
प्रोग्रामिंग से कोडिंग तक...

आदमी अब शार्प होने लगा
घरवाली से गुफ़्तगू करने लगा...
'मैं करता हूँ न घर को मैनेज तुम घर में रहो..
तुम तो जानती हो न कि जमाना ख़राब है...
जिंदगी में मजे करो..
मैं हूँ न तुम्हारे लिए...'

धीरे धीरे घरवाली घर में रमती गयी...
बच्चों में...
परिवार में...
घर गृहस्थी में...
वह क्या जाने मैथ्स साइन्स...
उसको क्या करना है अर्थशास्त्र और स्टेटिस्टिक्स का...

कहते है कि हुनर को ज्यादा पॉलिश करने पर हुनर और निखरता है...
आदमी का शिकार वाला हुनर भी अब निखरने लगा था...
वह अब नफ़ासत से शिकार करने लगा...
औरतें फिर घर में ही रमने लगी... 
फैशन, टीवी और पूजा पाठ में 
रमती गयी...                     







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