गड़कालिका तू धारवाली
गड़कालिका तू धारवाली
हरिगीतिका छंद
गड़कालिका तू धारवाली, मालवा की अंबिका |
तू स्वामिनी पोवार कुल की, भोज की जगदंबिका ||
से धार नगरी मा जलाशय, नाव से सागर तरा |
ओको किनारो पर बसी तू, माय सबकी गड़परा ||१||
पोवार जालमसिंह का बी, भय गया मन्नत पुरा |
आधार बुड़पण मा मिलेतो, एक सुंदरसो टुरा ||
माता भवानी को कृपा लक, वंश से पोवार को |
से ख्याति फैली संसार मा, नाव मोठो धार को ||२||
सब देशभर का आवसेती, माय तोरो गड़परा |
मन्नत सपा करसेस पूरी, भक्त सेती जे खरा ||
करदे सुखी संसार मोरो, मी करूसू प्रार्थना |
गोकुल कसे स्वीकारले तू, माय मोरी याचना ||३||