यशस्वी
यशस्वी


मैंने, प्रिया को यशस्वी के आत्महत्या के प्रयास के अतिरिक्त सब बात बताई थी। मेरा, मानना है जिस अपनी भूल का हमें पछतावा होता है और जिसका प्रचार हम नहीं चाहते, उसे जितने कम से कम लोगों में सीमित रखें, वह अच्छा होता है। प्रिया को यह भी बताया था कि यशस्वी को, सहायता की भावना से मैंने, मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए, रविवार को बुलाया है।
रविवार यशस्वी आई थी। उस समय मैं, 15 मिनट की नैप (झपकी) ले रहा था। प्रिया ने, उसे बँगले के मेरे ऑफिस कक्ष में बिठाया था।
यशस्वी ने पूछा था - आप, सर की बेटी हैं?
प्रिया, खिलखिलाकर कर हँस पड़ी बोली - मैं सर की, पत्नी हूँ। तुम्हारी जितनी बड़ी, हमारी एक बेटी है।
यशस्वी झेंप गई, लजाकर पूछा - कोई आप जितना मैनटैनड, कैसे रह सकता है?
प्रिया ने उत्तर दिया - यह सरल है। जीवन अत्यंत सरस होता है। यदि, भोजन-पेय और अन्य खानपान से ही, रस निकालने के स्थान पर उसे संतुलित मात्रा में लें और हम, अन्य अच्छे कार्यों से अधिकाँश, जीवन रस लेने की कला अपने में विकसित करें, तो इस तरह मैनटैनड रहा जा सकता है।
यशस्वी (प्रभावित होते हुए) - मेम, आप इस हेतु क्या करती हैं?
प्रिया - मेरी कई हॉबीज हैं उन्हें करके मैं, जीवन रस लेती हूँ। फैशन डिजाइनिंग भी मुझे बहुत ख़ुशी देता है।
जब मैं कार्यालय कक्ष में पहुँचा दोनों ऐसे वार्तालाप में थे। संयोग से मेरे पहुँचने पर ही, प्रिया के मोबाइल पर कोई कॉल आया और वह रिप्लाई करने भीतर, बैठक कक्ष में चली गईं।
यशस्वी एवं मुझ में मुस्कुराहट का औपचारिक आदान-प्रदान हुआ। यशस्वी की बॉडी लैंग्वेज, पिछल दिनों से विपरीत आज, उसे आत्मविश्वास से ओतप्रोत दिखला रही थी। इसे देख मुझे अत्यंत ख़ुशी अनुभव हुई कि जीवन से भरपूर, एक बेटी का अनायास ही, मैं जीवन रक्षक हुआ था।
बिना अन्य भूमिका के मैंने, यशस्वी को पिछली भेंट का, उसका प्रश्न स्मरण कराया और पूर्व विचारा, अपना उत्तर शुरू किया -
यशस्वी, प्रायः सभी के साथ होता है, अपना मनोनुकल प्रदर्शन न कर सकने से, अवसाद आता है। हम भारतीय आस्तिक प्रकार के मनुष्य होते हैं। असफलता से ऐसे अवसाद में घिरकर हम अनायास ही, अपने ईश्वर की अविनय करते हैं, जबकि उन पर हमारी पूर्ण आस्था होती है। तुम्हारे पर लेकर बात करें तो, अभियंता होकर धनार्जन करना तुम्हारी इक्छा थी। परीक्षा वाले दिन तुम्हें बुखार आ गया। फलस्वरूप तुम, वह स्कोर करने में असफल रही जिससे, तुम्हारा अभियंत्रिकी में प्रवेश सुनिश्चित होता।
मैंने एक चुप्पी लेकर उसे देखा वह तन्मयता से मेरा कहा जाता, सुन रही थी तब मैंने आगे कहा -
अपनी इक्छा से तुमने जीवन खत्म करना चाहा, मगर ईश्वर ने अपनी इक्छा से पहले ही मुझे, वहाँ पहुँचा दिया। यथार्थ यह है कि मैं, नर्मदा किनारे, सैर को नित्य नहीं जाता हूँ। ऐसे, ईश्वरीय इक्छा से मैं, तुम्हारे नवजीवन का निमित्त बना हूँ। जीवन, वस्तु स्वरूप ऐसा है कि प्रत्येक मनुष्य के, न्यायसंगत मनोरथ पूरे हो सकते हैं। आवश्यकता इतनी बस होती है कि जो परिस्थिति, उसके साथ बन जाती है उसमें, सही विकल्प की पहचान कर, आगे बढ़ना होता है।
फिर मैंने पूछा- जो मैं कह रहा हूँ, तुम समझ रही हो?
यशस्वी ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा- जी हाँ, सर!
तब मैंने अपनी बात फिर आगे बढ़ाई - जानती हो, एक दृष्टि से तुम्हारा असफल होना अच्छा रहा है।
मैं आगे कहता उसके पहले ही, यशस्वी ने असहमति से प्रश्न किया - भला! असफलता, कभी अच्छी कैसे हो सकती है?
अपने स्वर को अत्यंत मृदु रखते हुए मैंने कहना जारी रखा -
वही मैं आगे बताने जा रहा हूँ। वर्तमान में जो तुम्हारी पृष्ठभूमि है, पापा अस्वस्थ चल रहे हैं, बचत ज्यादा है नहीं तथा पापा की आय घट गई है। ऐसे में यह मुश्किल होता कि तुम, अभियांत्रिकी की चार-पाँच वर्षों की पढ़ाई निर्विघ्न कर पातीं। वास्तव में, तुम्हें, तुम्हारी माँ एवं बहनों के पर्याप्त उदर-पोषण आदि के लिए यह जरूरी है कि तुम्हारे (अस्वस्थ) पापा को ऐसा सहायक मिले, जिसकी मदद से वे अपनी शॉप कम उद्यम से, सुचारु चला सकें।
ऐसे में विकल्प तुम ही बनती हो। तुम्हारी, प्रवेश परीक्षा में असफलता, तुम्हारे परिवार की पर्याप्त आय सुनिश्चित करने में, सफलता साबित हो सकती है।
मैं चुप हुआ तो यशस्वी बोली - सर, मुझे समझ तो आया है मगर मैं, आपसे ज्यादा स्पष्ट सुनना चाहती हूँ कि अभी, मुझे क्या करना है?
मैंने बोतल से दो गिलास में, जल लिया एक यशस्वी को दिया, एक से कुछ घूँट भर, अपना गला तर किया फिर आगे कहा -
मैंने ना तो पत्नी को बताया है ना तुम्हें ही, किसी को यह बताने की जरूरत है कि तुमने क्या प्रयास किया था। उसे एक दुःस्वप्न मान कर तुम्हें, भूल जाना है।
शायद तुम्हें, यह जानकारी प्रिया ने अभी दी होगी कि उन्होंने, फैशन डिजाइनिंग में डॉक्टरेट की उपाधि ली है। कल से ही तुम, अपने पापा के साथ काम करते हुए, पहले कुछ दिनों सिलाई की कला सीखो एवं उन पर से व्यवसाय का भार कम करो।
तुमने बताया है कि बारहवीं में तुमने, 90% स्कोर किया है। जो इस बात का संकेत करती है कि तुम प्रतिभावान हो एवं अवसर और अनुकूलता मिले तो तुम आईपीएस तक हो सकती हो। मगर ऐसी अनुकूलतायें तुम्हें नहीं है। तब भी निराश होने की जरूरत नहीं, प्रतिभा व्यर्थ नहीं होती है। तुम उसे इंजीनियरिंग में न लगा कर व्यवसाय में लगाओगी तो, यहाँ नाम और धन अर्जित कर सकोगी।
दो तीन महीनों में जब इसका सफल आरंभ कर लोगी तो तुम, प्रिया से नियमित मार्गदर्शन लेकर अपने व्यवसाय में, विशिष्ठ डिजाइनिंग का सम्मिलन कर लेना।
हर अपने कमजोर पल में, मुझसे बात करते रहना। मैं, तुम पर निराशा हावी न होने दूँगा। ऐसा करते हुए चलने से, निश्चित है कि अभी की असफलता, तुम्हारी भविष्य की शक्ति सिध्द होगी।
मैं, देख सकूँगा कि तुम्हारा व्यवसाय और नाम इस शहर में चल निकलेगा। कभी हम, इस शहर से स्थानान्तरित भी कर दिए जायेंगे, तब भी तुम्हारी प्रसन्नता में हम अति प्रसन्न होंगे।
यशस्वी की, मेरे कहे की प्रतक्रिया में, भाव-भंगिमा, मुझे आश्वस्त करने वाली थी।
तब तक प्रिया कक्ष में, वापिस आ गई थी। पीछे ही सेविका, चाय-नाश्ते के ट्रे सहित आई थी। मुझे एक बैठक में जाना था, मैंने यशस्वी से अभिवादन के साथ, विदा ली थी। पीछे, प्रिया और यशस्वी चाय लेते हुए बात करने लगीं थीं।
फिर जब में कार में बैठ रहा था - मुझे उन दोनों की हँसते हुए बात करने की आवाज सुनाई दी थी। दोनों में मित्रता हुई है, इस विचार ने मुझे मानसिक संतोष दिलाया था।