योग्यता का रंग

योग्यता का रंग

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जब से संगीता को लड़कियों की शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में काम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा हुई थी। घर में बधाई देने वाले लोगों का आना आना शुरू हो गया था। आश्चर्य तो इस बात का था कि अब उसके लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते आने लगे।

संगीता अपने माता पिता की इकलौती सन्तान थी। उन्होंने उसका पालन -पोषण, शिक्षा,संस्कारों में कोई कमी नहीं आने दी। स्कूल और कॉलेज में हमेशा प्रथम ही आती। सर्व गुण सम्पन्न थी पर एक ही कमी थी । उसका रंग गोरा नहीं था, इसलिए बचपन से ही उसको यह आभास हो गया कि हमारे समाज में व्यक्ति को गुणों से नहीं रूप रंग से परखा जाता है। घर -परिवार और समाज में अपनेप्रति होंंने वाले व्यवहार,तानों, कटाक्षों से उसकामन क्षुब्ध होता।

अब कुछ लोग संगीता को देखने आते तो खूब तैयारियां होती। मेहमानों की आव भगत में कोई कसर न होती । पर बात न बनती। लड़के वाले किसी न किसी बहाने मना कर देते।

कुछ लोग ज्यादा दान दहेज की बात करते। माता पिता सोचते कि दहेज देना पड़े तो कोई बात नहीं,बेटी का घर तो बसेगा। एक ही तो बेटी है। सबकुछ उसी का है।

संगीता इस बात का विरोध करती। कहती "मां ! दहेज देकर अगर शादी कर भी दोगी। सब कछ लुटा भी दोगी । फिर भी खुशी न मिली और दहेज की मांग बढ़ती रही तो ?"

बन संवर कर,सबके सामने जाना,उनके प्रश्नों का उत्तर देना उनकी भेदती नज़रों का सामना करना अब ठीक नहीं लगता। आखिर कब तक यह नाटक झेलना होगा ?

एक दिन जब माँ उसे समझाने लगी कि जीवन में कुछ समझौते करने ही पड़ते हैं। संगीता बहुत नाराज हो गई।

"माँ समझौता किस बात के लिए ? क्या मेरा रंग अब आपको भी पसंद नहीं, बचपन से तो कभी कुछ नहीं कहा । हमेशा मुझे हौसला दिया। बाहरी रंग तो दिखावटी है मनुष्य का मन यानी अंतरंग स्वच्छ होना चाहिए। तो अब ये समझौते की बात क्यों?"

"एक ओर हम चंद्रमा और मंगल ग्रह पर जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं और दूसरी ओर ऊँच नीच व काले गोरे रंग की बेड़ियों में बँधे हैं अब तक। "

माँ को उदास देख कर फिर बोली-

"अगर आप चाहें तो दूसरा समझौता कर लें। जबरदस्ती विवाह दहेज़ देकर करने से अच्छा है आप मुझे अपना काम करने के लिए पैसा दे दें । हम ऐसी अन्य लड़कियों के लिए शिक्षा के संस्थान बनाएँ ,उन्हें आत्म निर्भर बनाएँ ताकि उन्हें देख का पुरुष वर्ग के मन से, समाज से यह रंग भेद मिटा सकें। "

उसने अपने माता पिता को मना ही लिया और वादा भी किया कि वो जैसी है ,उसके रंग रूप के साथ अगर कोई अपनाएगा तो वह विवाह करेगी।

संगीता तन मन धन से अपने कर्तव्य पथ पर बढने लगी ।  उसने अपने संस्थान में आनेवाली लड़कियों को शिक्षित करने के साथ यह हौसला देना आरंभ किया कि उन्हें आत्म निर्भर बनना। है अपने रंग रूप या शरीर की किसी कमी से हीन भावना से ग्रसित नहीं होना है। अपने हुनर और कार्य कुशलता से आत्म सम्मान के साथ जीना है। अब उसके काम की प्रशंसा होने लगी।

आज संगीता को जब राष्ट्रीय पुरस्कार मिल रहा था। माता - पिता की खुशी का कोई ठिकाना नही था। संगीता ने और लड़कियों की तरह अपने रंग के कारण कोइं समझौता कर अपना जीवन व्यर्थ नहीं किया वरन् सबसे अलग अकेले ही एक नई राह चुनी। लोगों ने उसकी निंदा भी की पर धीरे धीरे उसकी अलग पहचान बन गई।

आज उसकी योग्यता की चमक के आगे सभी रंग फीके लग रहे थे।


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