ये उन दिनों की बात है
ये उन दिनों की बात है
निशा ओ निशा रूक तो....पीछे से आवाज आई। वो स्कूल का आखिरी दिन था।
मैं पीछे मुड़ी तो राहुल था। क्या हुआ राहुल क्यूं चिल्ला रहे हो। जल्दी बोलो मुझे देर हो रही है। बस निकल जायेगी मेरी। तुम भी न राहुल कुछ न कुछ रहता ही है तुम्हारा।
अरे निशा क्यूं इतना गुस्सा कर रही हो। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी की मम्मी मेरी राह देख रही होंगी। मैं घर जा रही हूं बाद में बात करना।
और निशा इतना कहकर बस में बैठ गई। राहुल वहीं खड़ा कुछ देर तक यही सोचता रहा निशा ने मेरी बात क्यों नहीं सुनी। थोड़ी देर रुक जाती तो क्या बिगड़ जाता। पर चलो कोई बात नहीं। कल फोन पर बात कर लूंगा। और राहुल भी घर की ओर निकल गया।
अचानक ध्यान आया कि राहुल कुछ कह रहा था। रात भर निशा सोचती रही। अगले दिन राहुल से फोन पर बात हुई। तो उसने मिलने बुलाया। कहा निशा मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। करनी तो कल भी थी। मगर तुम बिना सुने ही चली गई।
निशा ने कहा शाम को मिलती हूं।
निशा राहुल से मिलने
पास के पार्क में गई तो राहुल ने बताया निशा मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। बहुत दिनों से तुमसे कहना चाहता था मगर कहने की हिम्मत नहीं हुई।
निशा ने कहा राहुल ये कोई शादी की उम्र नहीं है। अभी हमें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।
ये कहकर निशा घर चली गई। कई साल बीत गए थे इस बात को। आगे की पढ़ाई पूरी करने के बाद निशा की शादी हो चुकी थी। और वो एक कामयाब डॉक्टर बन चुकी थी।
कुछ समय बाद अचानक निशा की मुलाकात राहुल से हुई। राहुल के हालात कुछ ठीक नहीं लग रहे थे। यूं तो राहुल एक बड़ी कम्पनी में सी. ई. ओ. के पद पर कार्यरत था। मगर आज भी वह निशा का इंतजार कर रहा था।
निशा ने उसे बहुत समझाया कि उनके रास्ते पहले से ही अलग थे। अब वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाए।
निशा को हमेशा यही अफसोस रहा। कि उसकी वजह से राहुल ने कितना सहा है।
हमें किसी को अपनी जिंदगी में इतना शामिल नहीं करना चाहिए। कि हमारी जिंदगी उनकी मोहताज हो जाए। खुद के लिए भी सोचना चाहिए। क्यूंकि जिंदगी हमारी है।