nutan sharma

Inspirational

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कुम्हार और माटी

कुम्हार और माटी

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कुम्हार से माटी का रिश्ता ऐसे है, जैसे कि बालक का कोमल मन। जिस प्रकार एक कुम्हार माटी को जैसे चाहे ढाल सकता है, उसी प्रकार एक बच्चे के कोमल मन को हम जैसे चाहे उसी प्रकार ढाल सकते हैं।

मैं कावेरी, बात उन दिनों की है, जब मैं महज १२,बरस की रही हूंगी। गर्मियों की छुट्टियां बिताने मां के साथ मेरे ननिहाल चली गई। वहां पड़ोस के दूसरे गांव में एक बाबा मिट्टी के बर्तन बनाने का काम किया करते थे। वे रोज अपने पोते बबलू को जिसकी उम्र लगभग १० बरस होगी बर्तन बेचने साथ में लाया करते थे। बाबा बर्तन बेचते और बबलू मोल भाव करके लेनदेन किया करता था। बबलू मोल भाव का पक्का था, होशियार था। सभी गांव में उसकी तारीफ किया करते थे। एक रोज़ मां ने बाबा से पूछा, बाबा ये आपका पोता अभी छोटा ही तो है, फिर इसे अभी से ये सब क्यूं सिखा रहे हो। अभी काफ़ी उम्र है, सीखने को। बाबा ने मां से कहा बिटिया, मैं चाहता हूं। कि इसका भविष्य उज्ज्वल बने, खूब नाम कमाए ये, पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने। अभी से मेहनत करेगा, तो मेरी तरह बुढ़ापे में मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। और सुकून से जीएगा। इसीलिए इसे अपने साथ लेकर चलता हूं, ताकि अभी से इसे मेहनत और ईमानदारी का मोल पता रहे। बाबा की बात में कुछ तो बात थी।

मां जब भी नानी को फ़ोन करती मैं वो बबलू के बारे में जरूर पुछती। नानी के यहां जाना अक्सर लगा रहता था। अब हम बड़े हो चुके थे। एक बार मैं नानी के यहां गई तब वहां पता लगा कि बबलू पढ़ लिख कर एक बड़ा डॉक्टर बन गया है। और उसने अपनी मेहनत से गांव में ही हॉस्पिटल खोलकर सेवा करने का फ़ैसला किया है।

बाबा ने सच ही कहा था। कि वो उसे कामयाब बनाएंगे। आज बाबा तो नहीं रहे। लेकिन जहां भी होंगे ये सोचकर खुश होंगे कि उनकी मेहनत सफल रही। उन्होंने माटी से को सीखा था। वो रंग ला रहा था।



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