ये मेरा इंडिया
ये मेरा इंडिया


प्रतीक शुरू से ही बहुत होशियार था, दसवीं बोर्ड में 90% के साथ ,12thबोर्ड व आईआईटी में चयन।
प्रतीक ने कम उम्र में ही अच्छे पद को प्राप्त किया व अच्छी सफलता प्राप्त कर वह विदेश में कार्यरत हो गया।
आज पूरे 5 साल बाद प्रतीक अपने ऑफिस कॉन्फ्रेंस के लिए भारत आ रहा है।मां बाबूजी की प्रसन्नता फूली नहीं समा रही हैं। खुशी और दुगनी हो गई जब सुना बहु के साथ साथ दो फूल जैसे जुड़वाँ पोते लव कुश भी आ रहे है।
प्रतीक के माता-पिता बहुत खुश थे लेकिन उन्हें अंदर ही अंदर एक चिंता सताए जा रही थी कि अब क्या प्रतीक और उसका परिवार हमारी छोटे से घर में यह 10 दिन गुजार पाएगा। क्या उसके बच्चे इस भारतीय कल्चर को अपना पाएंगेॽ
यह सोच माता जी के कहने पर प्रतीक के पिताजी ने इंटरनेशनल होटल में उनकी बुकिंग करा दी। जिससे उनको वही सुविधाएं मिलें जो विदेशों में उनको प्राप्त हैं।
पर जैसे ही प्रतीक का परिवार और उनके पोते अपने दादा दादी से मिलते हैं तो वह यह कहते हैं।
दादू हमें अपने घर ही जाना है जहां पापा का बचपन बीता। जहां मम्मी शादी करके आई जहां आप हमें रोज पार्क में घुमाने ले जाओगे।जहां इन 10 दिनों में हम सारे त्यौहार होली दिवाली आपके साथ बनाएंगे।और हम सब दादी के हाथ के नए-नए व्यंजन खाएंगे। साथ में सब गाना गाएंगे।
यह दुनिया एक दुल्हन
दुल्हन के माथे की बिंदिया
यह मेरा इंडिया यह मेरा इंडिया।
सब बातें अपने पोते लव कुश के मुंह से सुनने के बाद दादा दादी इतने खुश हो जाते हैं कि प्रतीक पाश्चात्य सभ्यता में जाने पर भी अपने संस्कारों को अपने बच्चों को देना नहीं भुला।