डिजिटल जमाना
डिजिटल जमाना
संडे का दिन है सब गलियां सुनी है घरों में कोई चहल-पहल नहीं, यह संडे वाली रौनक गई कहा।
चलो मिश्रा जी के घर चला जाए उनके यहां संडे फन डे होता है सभी मिलकर हंसी मजाक करते हैं और नया नया नाश्ता खाना बनता है शायद चार दोस्त वहीं मिल जाए ।
अरे !मिश्रा जी के घर भी इतना सन्नाटा, आज मिश्रा जी और उनके बच्चे गए कहां ।मैंने मिश्रा जी को आवाज लगाई ।मिश्राइऩ जी नाश्ता बनाती हुई किचन से मेरे पास आए और उन्होंने मुझे मिश्रा जी के कमरे की तरफ जाने का इशारा किया ।
जैसे ही मैंने दरवाजे में दस्तक दी और मिश्रा जी के कमरे में पहुंचा TV चल रहा था और मिश्रा जी मोबाइल पर बिजी थे। मैंने मिश्रा जी से पूछा कि घर में इतना सन्नाटा क्यों है ॽ
तब मिश्रा जी बोले भाई जमाना बदल गया है अब दोस्त और रिश्तेदार संडे को मिलने नहीं आते ।सभी सुबह की राम राम WhatsApp में कर लेते हैं और FB में अपनी पिक्चरों के लाइक्स ढूंढते है।
हंसी के ठहाके अब नहीं गूंजते, क्योंकि दोस्तों के चुटकुले हर WhatsApp ग्रुप में आते हैं और हर व्यक्ति स्वयं में हंस लेता है। अब गलियों में बच्चे क्रिकेट नहीं खेला करते, क्योंकि उनकी दुनिया डोरेमॉन और शिनचैन में खो गई है नए नाश्ते की फरमाइशे धूमिल हो जाती है। क्योंकि नए होटलों की बारी हर संडे आती है ।तो अब बताओ शर्मा जी की आपने अब तक नए जमाने के हिसाब से अपना मोबाइल क्यों नहीं बदला।
