आकाक्षां- बेटी है तो कल है
आकाक्षां- बेटी है तो कल है
सुधा (सास)-"अनु लो हलवा खा! लो कुछ खट्टे का मन है तो गोलगप्पे मंगवा दूं।"
अनु- नहीं मम्मी जी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है जी खराब हो रहा है।
सुधा- बेटा ऐसे दिनों में तबीयत खराब ही रहती है। पर कुछ ना कुछ खाते रहना चाहिए नहीं तो तुम्हारी हैल्थ पर भी फर्क पड़ेगा, और बच्चे के भी नुकसान होगा।
अमित (बेटा) अनु को जो पसंद हो वह ला दो। और थोड़ा ऑफिस से समय पर आ कर इस को समय दो जिससे इसका मन लगे।
अमित- मम्मी इसका मन नहीं लग रहा यह अपनी माँ के पास जाना चाहती है।
सुधा जी-ठीक है बेटा उसको थोड़े दिन माँ के पास छोड़ आओ।
अनु दो महीनें अपनी माँ के यहां पीहर रहने गई 2 महीनें बाद अमित अपनी माँ के साथ अन्नू को लेने गए।
जब अन्नू वापस ससुराल आ रही थी तब अनु की माँ ने कहा "कि बेटा चाहे कुछ भी हो भगवान करे पहला बेटा हो जाए क्योंकि सभी के ससुराल वाले बेटा ही चाहते हैं, और फिर तुम्हारा ससुराल के लोग तो गांव के भी हैं ,और तुम्हारी सास के पहले से ही तीन बेटियां हैं बाकी सब भगवान को मंजूर होगा वही होगा तुम अपना ख्याल रखना।" अनु जब अपने ससुराल पहुंची तब उसके मन में यह बात घूम रही थी पर इसमें अपना बस थोड़ी है।
भाभी आ गई भाभी आ गई झूमती हुई तीनों छोटी ननदें भाभी के पास आकर बैठ गईं। तभी सुधा जी ने कहा भाभी अब थक गई हैं उन्हें उनके कमरे में ले जाओ और आराम करन दोे। तीनों ननदें भाभी को जब कमरे में लाईं तब अन्नू कमरा देखकर चकित हो गई। कमरा फूलों से सजा था और चारों तरफ पोस्टर ही पोस्टर लग रहे थे। जब अनु ने ध्यान से पोस्टरों को देखा तो सभी तस्वीरें अधिकतर लड़कियों की थी।
जब सुधा जी कमरे में आई तब अनु से कहा "बेटा मुझे ऐसी फूल सी पोती ही चाहिए, जो मेरी बेटियों की तरह प्यारी हो। बहु की तरह सुंदर हो, मेरा बचपन जिसमें मैं देख सकूं, कहकर खिलखिलाकर हंसने लगीं।"
समय बीत गया जब डिलीवरी हुई सुंदर सी कन्या ने जन्म लिया उसका नाम रखा गया "अकांक्षा "। सभी परिवार बहुत खुश है़ं, तीनों ननदों ने मिलकर थालियां बजाईं। पिता व सुधा जी ने बधाइयां बांटी।
सभी रिश्ते नातेदारों को भव्य आयोजन कर बुलाया गया। कई लोगों ने थाली बजाने की परंपराओं का विरोध करते हुए कहा की सुधा जी "थाली परंपरा अनुसार बेटे के होने पर बजाई जाती हैं, बेटियां तो पराया धन होती हैं। हमने आज तक ऐसी परंपरा नहीं देखी आपकी भी अमित के होने पर ही थाली बजी थी। "
सुधा जी ने बड़े गर्व के साथ उत्तर दिया "जब मेरी बेटियां संसार में आईं तब न खुशियां बनाई गई ना ही मिठाइयां बांटी गईं, न बधाई के मंगल गीत हुए। चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा छा गया। उस दिन मेरा मन बड़ा दुखी हुआ की बेटी तो भगवान का वरदान है वह तो दो घरों की इज्जत है फिर क्यों नहीं खुशियां मनाई जातीं।
पराया धन कह दो पर दुख दर्द में वह भी तो दौड़ी आती है, वह भी तो पढ़ लिखकर घर की शान बढ़ाती हैं।
लोगों ने जब यह कहा कि थाली रीति-रिवाज के अनुसार बेटी होने पर नहीं बजाई जाती यह परंपरा नहीं है। तब मुझे यह दुख हुआ की यह परंपरा हम सब ने मिलकर ही तो समाज में बनाई है। तो क्या हमें परंपराओं को बदलने का हक नहीं है।
जब तक हम शुरुआत नहीं करेंगे तब तक समाज कैसे बदलेगा। लड़की की इज्जत घर से ही शुरु होती है जब हम हमारे घर में ही लड़की को पैदा होते ही मान सम्मान नहीं देंगे तो बाहर हम कैसे आशा कर सकते हैं कि वह सुरक्षित होंगी या उनका मान होगा।
सभी घर में आए मेहमान सुधा जी की बात पर खुश हुए और तालियां बजाई। एक गांव में रहने वाली महिला जब इतना सोच सकती है तो हमें भी हमारी परंपराओं से हटकर समाज को नई सोच की ओर ले जाना होगा। तभी सुधा जी के घर आई महिलाओं ने घर में थाली बजाई और बधाई गाना गाए।
मैं मेरी कहानी के माध्यम से यह कहना चाहती हूँ की जो लोग बेटियों को गर्भ में मार देते हैं उनको समाज में कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
बेटी है तो कल है। वंश और दोनों परिवारों की असली प्रतिष्ठा बेटियों से ही है। घर-घर में बेटे हों तो उनकी बहनें भी हों। बेटियां हो जिससे हर तीज त्यौंहार रौनक आए ऐसा हर परिवार खुशहाल हो। पुराने बेतुके रीति-रिवाजों की जंजीरों को तोड़, नये समाज का निर्माण हो।
