प्रकृति के गीत
प्रकृति के गीत


अमिता जी को शुरू से ही पेड़ पौधों से बातचीत करना अपना छोटे से घर के बगीचे में वक्त बिताना बहुत पसंद था। वह घंटों कभी गुलाब की क्यारियों से बात करती। जिसमें अब बड़े-बड़े गुलाब खिला करते थे। जिससे उद्यान खुशबू से महक उठता था। सुबह जब हरे तोते अमरूद के पेड़ में बैठा करते थे तो उनका पेड़ों में बैठना सुहाना सा प्रतीत होता था। जूही की बेल जो छत से लटकती हुई उद्यान की तरफ आ रही थी उसमें चिड़िया चहचहाती थी। नीचे कालीन के समान घास जिसमें सावन के महीने में झूला डाल दिया जाता था व बारिश के वक्त मानो ऐसा प्रतीत होता था जैसे इंद्रधनुष के सभी रंग आज अमिता जी के उद्यान में सिमट आए हैं। और सभी मिलकर प्रकृति का गीत गा रहे हैं। यही उनका छोटा सा बगीचा उनका सच्चा साथी था।
अमिता जी के श्रीमान जी व बेटे को उनके पास बैठने का वक्त ही कहां था वह भी कभी बैठते तो बगीचा ही चाय के साथ गपशप हो जाती।
अमिता जी के पुत्र की शादी हुई। बहू ने ड्रेस डिजाइनिंग का कोर्स करा हुआ था। वह अपने मैके में भी अपना बुटीक चलाती थी। शादी के बाद अमित जी के बेटे प्रतीक ने मां से कहां कि मां अनीता दिन भर बोर होती है उसका मैके में बुटीक का सारा सामान भी पड़ा है हम एक बड़ा सा शोरूम गार्डन हटवा के बनवा लेते हैं जिससे उसका मन लग जाएगा।
अमिता जी ने बेटे को कहां बेटा इस दौड़ भाग वाली जिंदगी में जहां महज हम 24 घंटे में साथ 4 घंटे ह
ी रहते हैं। वह समय हम सकारात्मक रूप से एक साथ बैठकर इस छोटे से बगीचे में ही बिताते हैं। सुबह की चाय जब हम सब मिलकर पीते हैं तो पक्षियों का गीत, सूर्य की पहली रोशनी तुम्हारे पिताजी और मेरा योगा, तुम्हारा चाय के साथ अखबार पढ़ना, अनीता का बगीचे में तुलसी में पानी डालना यह सब प्रकृति का सौंदर्य हमसे छीन जाएगा।
अनीता जी ने अगले ही दिन पीछे वाला कमरा को खाली करवा कर उसे शोरूम के रूप में बदलवाना शुरू कर दिया। वह कमरा शोरूम के लिए तैयार हो गया। अनीता का भी बुटीक चलने लगा और हर महीने में 2 दिन अनीता पार्क में ही डिजाइनर कपड़ों की प्रदर्शनी लगाती थी। उस प्रदर्शनी में लगे कपड़े ,बगीचे की सुंदर छटा गुलाब की खुशबू कपड़ों को महका देती थी। बुटीक आकर्षण केंद्र ही वह बगीचा था जिसे देख कर सब उसके बुटीक में आते थे साथ में उद्यान में झूलों में बैठकर सभी प्रकृति का आनंद और सकारात्मक ऊर्जा पा रहे थे।
कई ग्राहक उद्यान के नए-नए पौधों के बारे में पूछ कर अमिता जी से ज्ञान लेने लगे। उन्होंने भी अपने घर में उन पौधों को लगाना शुरू कर दिया। और बागवानी की रोचक जानकारी अमिता जी देने लगी। अनीता ने भी अपनी सास को बहुत शुक्रिया अदा किया जिन्होंने प्रकृति के साथ उसके छोटे से कार्य को जोड़कर प्रोत्साहित किया।
थोड़े दिनों बाद अमिता जी का पोता भी उस प्रकृति के सौंदर्य का लाभ उठाकर पक्षियों के साथ प्रकृति के गीत अपनी भाषा में गाने लगा।