न्याय
न्याय
ना कोई कोर्ट, ना कोई कचहरी, ना न्याय की देवी के सामने शपथ लेनी पड़ी यह कैसा न्याय है जिसे सुनकर आज डॉक्टर सुवर्णा यह सोच रही हैं इंसाफ जिंदगी में कभी अपने आप भी मिलता है।
आज वह अपराधी जिसने सुवर्णा के जीवन को बर्बाद करने का प्रयास किया था आज वह खुद जिंदगीनुमा कटघरे में खड़ा हैं और अपने अपराध के लिए पश्चाताप के संग क्षमा मांग रहा हैं।
"डॉक्टर साहब जल्दी चलिए मेरा बेटा अपने पुत्र के साथ खून से लथपथ बाहर पड़ा है जल्दी से उनका इलाज करके उन्हें जीवनदान दे दीजिए। एक सरफिरे लड़कों की टोली ने उसकी बाइक को टक्कर मारी और वह गिर गया ।वह दोनों बेहोश हो गए लेकिन किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की काफी खून बह गया है ।यहां सब उनके लिए पुलिस कार्रवाई की बात कर रहे हैं।
प्लीज डॉक्टर साहब आप मेरी मदद करो नहीं तो उसकी मां वह पत्नी को मैं क्या जवाब दूंगा ।वह गांव से अपने पुत्र को परीक्षा दिलवाने के लिए लाया था। डॉक्टर साहब वह भी अपने बच्चे को आपकी तरह बड़ा डॉक्टर बनाना चाहता है पर आज....... मैं आपके हाथ जोड़ता हूं दोनों का जीवन बचा लो ।
डॉ सुवर्णा ने पुलिस कार्यवाही को रोक कर पहले अपने फर्ज के अनुसार उनकी जान बचाने का प्रयास किया। दोनों की जान बच गई और जब उन्हें डिस्चार्ज किया जा रहा था तब पिता ने अपने पुत्र से कहा की मैडम के कारण आज तुम लोगों की जान बच पाई हैं इनका एहसान हम जिंदगी भर नहीं भूल सकते।
उन्होंने हमारी जिंदगी का कीमती 1 साल जो तुम्हारे पुत्र के लिए भी था वह भी बचाया है हम सदैव इनके ऋणी रहेंगे । ज्यो ही पुत्र ने डॉक्टर साहब को धन्यवाद करना चाहा वह अपने आप को एक अपराधी महसूस कर रहा था क्योंकि वह वही व्यक्ति था जिसने जब सुवर्णा मेडिकल की परीक्षा देने जा रही थी तब अपने दोस्तों के साथ उसको परेशान करके स्कूटी से गिरा दिया था तथा हॉस्पिटल तक नहीं पहुंचने दिया और उसका वह साल खराब हो गया ।
अब वह अपने अपराध के लिए उसके आंखों से अश्रु धारा के रूप में हॉस्पिटलनुमा कटघरे में खड़ा होकर पश्चाताप कर रहा था और अपने द्वारा किए गए अपराध के लिए क्षमा मांग रहा था ।
सुवर्णा वापस मेहनत करके डॉक्टर तो अगले साल भी बन गई । पर स्वर्णा को शायद उस समय कोई इंसाफ ना मिला।
पर आज ईश्वर ने स्वयं ने न्याय कर दिया।