ये कैसा सम्मान?
ये कैसा सम्मान?
"अरे! सुहानी तू ये क्या कर रही है, ये कूड़ा तू क्यों उठा रही है, कल काम वाली आंटी खुद साफ कर देंगी।"सुहानी की दोस्त मिश्री ने कहा
"कोई नहीं यार, मैं कर लूंगी; तू घर जा, आराम कर।"सुहानी ने थोड़े गुस्से में कहा
"क्या बात है यार, नाराज़ लग रही है, कुछ हुआ है क्या?" कंधे पर हाथ रखते हुए मिश्री ने पूछा।
"कुछ नहीं हुआ, बस थोड़ी सफाई कर रही हूं।"बिना मिश्री की तरफ देखे सुहानी बोली
"अरे यार बता ना।"थोड़ा सा झल्लाते हुए मिश्री ने पूछा।
"क्या बताऊं यार, तुम लोगों को ज़रा भी समझ नहीं है, बस रिपब्लिक डे सेलिब्रेट किया और चल दिए।"सुहानी गुस्से में बोल रही थी
"तो और क्या करना था?"हैरानी से पूछा मिश्री ने।
"क्या करना था क्या, यार हमारे भारत के झंडे यहां वहा
ं पड़े हुए हैं, जिनका हम सम्मान करने का दावा करते हैं, जो हमारे भारत का प्रतीक है, उनको यूंही सड़क पर पड़ा छोड़ गए, जो धूल में लिपटे हुए हैं और लोगों के पैरों से कुचले जा रहे हैं, बेहद शर्मनाक बात है हमारे लिए।"गुस्से में बोली सुहानी
"अरे यार! सही कहा, हमने तो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया, की हमें सारे बिखरे झंडों को उठा लेना चाहिए था, वो लोगों के पैरों के नीचे आ रहे हैं।"परेशान सा होते हुए कहा मिश्री ने
"वो ही तो, यार रिस्पेक्ट दिल से होनी चाहिए, क्या फायदा ऐसी सेलिब्रेशन का, जिसमें काम निकलने के बाद उस चीज की बिल्कुल इज़्ज़त ही ना रहे या करे।"सुहानी बोली
"थैंक्स यार, तुने मुझे ये बात समझाई, आज के बाद से ये गलती मुझसे कभी नहीं होगी और जितने भी लोगों को ये बात समझा सकूंगी, उन्हें जरूर समझाऊंगी।"मिश्री बोली
और मुस्कुराते हुए दोनों दोस्त झंडे उठाने लगी।