ये जो शहतीर है !
ये जो शहतीर है !
दुष्यंत कुमार की एक नज़्म है ;
" ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारों
दर्दे—दिल वक़्त पे पैगाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारों
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारों
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारों
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारों
कैसे आकाश में सूराख हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों !
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारों !"
अपने स्वतंत्र देश की इस विकास यात्रा में स्वार्थी, देशद्रोही, पूंजीपतियों की दुकानदारी भी खूब चल रही थी। राजनीतिक सम्बन्धों के सहारे कमीशन खोरी, भ्रष्टाचार, ठेके पट्टे के सहारे देश का एक वर्ग मालामाल होता जा रहा था। पुलिस और जांच एजेंसियों की सक्रियता के बावजूद व्हाइट कालर क्रिमिनल वर्ग का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था। दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहर ही नहीं गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर, नागपुर जैसे शहर भी क्रिमिनल्स की करतूतों से उबल रहे थे।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह कि अदालतों से भी ऐसे शातिर लोग अपनी शातिराना चाल की बदौलत और राजनीतिक पहुंच के कारण साक्ष्य के अभाव में या पुलिस की लचर पैरवी के चलते छूटते जा रहे थे। लखनऊ के मोदी हत्याकांड में ऐसा हो चुका था और अब मुम्बई के प्रशांत सुसाइड केस में भी ऐसे ही हालात बन रहे थे ।
कनिका ने बहुत सही समय पर अपनी सूझबूझ दिखाई और उसकी इस सूझबूझ के परिणाम भी अब सामने आने लगे थी। अदालत में प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी की जांच रिपोर्ट पेश की जा चुकी थी और अब उसको आधार बनाकर आगे की कार्यवाही पर बहस हो रही थी।
" मी लार्ड ! सी.आर.पी.सी.की वर्तमान व्यवस्था किसी भी प्राइवेट डिडेक्टिव एजेंसी को सरकारी एजेंसियों के पैरेलल जांच की अनुमति नहीं देती है।इस केस में पुलिस, सी.बी.आई.और उनकी सहयोगी जांच एजेंसियों ने बहुत मेहनत करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रशांत ने डिप्रेशन कुछ चलते सुसाइड कर लिया है। उसके सुसाइड के पीछे कतई कोई और वज़ह नहीं है। इसलिए जो क्लोजर रिपोर्ट लगाई जा रही है उसे कोर्ट को बिना शक स्वीकार कर लेना चाहिए।..दैट्स आल मी लार्ड !" इस केस में सरकारी वकील तनेजा ने उत्तेजना भरी बहस की शुरुआत की ।
अब कनिका की ओर से पैरवी कर रहे वकील मि.जे.जे.सकलानी उनका उत्तर देने के लिए खड़े हो गये थे।
"मी लार्ड ! मैं और मेरे मुवक्किल इस बात को मानते हैं कि भारत में अभी प्राइवेट डिडेक्टिव एजेंसियों को बहुत ज्यादा महत्व नहीं मिल पा रहा है। विदेशों में इन एजेंसियों की रिपोर्ट को प्राय: कोर्ट स्वीकार कर लेती है। समय अंगड़ाइयां ले रहा है। सरकारी एजेंसियों की अपनी सीमाएं हैं, उन पर ढेर सारे डाइरेक्ट या इनडायरेक्ट दबाव भी हुआ करते हैं..जैसा इस केस में भी मी लार्ड हो रहा है ..इसलिए इस नाज़ुक केस को रेयरेस्ट आफ़ दि रेयर मानते हुए मी लार्ड मेरे मुवक्किल की गुजारिश क़ुबूल कर ली जाय और पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों की क्लोजर रिपोर्ट को अभी ख़ारिज कर दिया जाय। दैटस आल मी लार्ड ! " वकील सकलानी ने मजबूती से अपना पक्ष रख दिया था।
कोर्ट में कुछ हलचल मच रही थी कि जज साहब की आवाज़ गूंज उठी-
" इस केस में पुलिस , सी.बी.आई.और अन्य एजेंसियों ने जो क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है उसे यह अदालत रिजेक्ट करती है। वादी पक्ष को एक महीने का समय दिया जाता है कि वे इस जांच की पूरी रिपोर्ट इस अदालत को और उसकी कापी पुलिस , सी.बी.आई. और अन्य एजेंसियों को सौंपें ।कोर्ट उस रिपोर्ट पर दोनों पक्षों को एक बार फिर बहस का मौका देगी और यदि कोर्ट ने उचित समझा तो आरोपियों के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेकर समन जारी कर दिया जाएगा।द कोर्ट इज़ एडजर्न्ड ।" जज साहब ने फैसला सुना दिया था।
वकील सकलानी, कनिका और उसके साथ आए अन्य लोगों के चेहरे पर अपनी शुरुआती जीत के चिन्ह साफ - साफ पढ़े जा रहे थे और उधर पुलिस और उनकी सहयोगी एजेंसियों के माथे पर बल पड़ गया था।
बाद में वकील सकलानी ने कनिका को अपने चेम्बर में बताया कि अगर डिडेक्टिव एजेंसी ने कम्पलीट रिपोर्ट दे दी होती तो हो सकता था कि आज ही अदालत क्लोजर रिपोर्ट में पेश तथ्यों की इन रिपोर्ट्स से तुलना करके बहस के बाद उसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट की तरह मानते हुए आरोपी पक्ष को समन जारी कर सकती थी । देश में आरुषि केस सहित तमाम इसके उदाहरण रहे हैं। लेकिन... कुछ सोच में पड़ते हुए सकलानी बोले अब इस प्राइवेट जांच एजेंसी को आरोपियों के खिलाफ भरपूर सबूत जुटाने होंगे ...हो सकता है दोबारा चार्जशीट भी दाखिल की करनी पड़े .......लेकिन हम करेंगे ! "
डिडेक्टिव एजेंसी वाले भी खुश थे कि इस पहले मामले से उनका भी नाम होगा। कनिका जब अगले दिन प्री एप्वाइंटमेंट के अनुसार अपने वकील सकलानी के साथ डिडेक्टिव एजेंसी के ऑफिस पहुंची तो उसे ये जानकर और भी खुशी हुई कि जय और वीरु जैसे देशी जासूस भी उस कम्पनी से जुड़े हुए हैं और इस केस में वे भी लगाये गये हैं। वहीं उन्हें यह भी बताया गया कि एजेंसी इस मामले में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I.) और मशीन लर्निंग (M.L.)का भी उपयोग करने जा रही है। कनिका सहित उस कक्ष के मौजूद लोग हतप्रभ रह गये कि जांच में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग होगा। उन्हें बताया गया कि सामान्य तौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को समानार्थी समझा जाता है, लेकिन ऐसा है नहीं।
कनिका कुछ पूछने पर डिडेक्टिव एजेंसी के डाइरेक्टर बोले;
" सरलतम शब्दों में कहें तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ है एक मशीन में सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कंप्यूटर साइंस का सबसे उन्नत रूप माना जाता है और इसमें एक ऐसा दिमाग बनाया जाता है, जिसमें कंप्यूटर सोच सके...कंप्यूटर का ऐसा दिमाग, जो इंसानों की तरह सोच सके। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत 1950 के दशक में हु जान मैकार्थी ने की थी।मशीनों द्वारा प्रदर्शित की गई इंटेलिजेंस के ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है, जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है।
उन्होंने आगे बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंस तरीके से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है।
कनिका को याद आ गई हॉलीवुड की वे फ़िल्में जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हुआ था....स्टार वार, आई रोबोट, टर्मिनेटर, ब्लेड रनर आदि जैसी फिल्में बन चुकी हैं...और भारत में भी तो प्रख्यात अभिनेता रजनीकांत की फिल्म 'रोबोट' में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को देखा-समझा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह थी कि उस एजेंसी के पास सोनिया नामक दुनिया की दूसरी रोबोट भी है। उसके हाव-भाव बिल्कुल मनुष्यों जैसे हैं और वह दूसरे के चेहरे के हावों-भावों को भी पहचान सकती है। वह अपनी इंटेलिजेंस से किसी से भी बातचीत करने के अलावा, मनुष्यों की तरह सभी काम कर सकती है और अपने खुद के विचार रखती है।
कनिका के दुख भरे कंटकाकीर्ण जीवन में शायद 'तबीयत से पत्थर उछालने ' का रिजल्ट निकलने जा रहा है !