यादों का एल्बम
यादों का एल्बम
तस्वीरों को भी यादों की तरह, समय के साथ धुँधला पड़ जाना चाहिए। उसके साथ बिताऐ लम्हों की यादें मैंने गलती से अपने फ़ोन में समेट ली थीं। उस वक़्त सेल्फ़ी का दौर नहीं था, तो उसकी तस्वीर मेरे फ़ोन में थी और मेरी शायद उसके फ़ोन में होनी चाहिए। शादी होने वाली है तो शायद उसने डिलीट कर दी होंगी। मगर, मेरा क्या? मेरी शादी ना तो होगी और ना मैं करूँगा।
तो इसका मतलब क्या? तस्वीरों को मैं भी डिलीट कर दूँ? मैंने कई दफ़ा कोशिश की, पर ना तो दिल ने अप्रूव किया और ना ही उँगलियों ने। सोचता हूँ, कभी तस्वीरों को फ़ोन मेमोरी में ट्रांसफर करके एक बार रिस्टोर कर दूँ, मगर कम्बख़त मोबाइल ऍप्स ने फ़ोन मेमोरी का एक कोना भी नहीं छोड़ा है।
कई बार सोचता हूँ कि वायरस के प्रकोप से मेमोरी कार्ड ख़ुद ही करप्ट हो जाऐ, लेकिन नई सरकार के डर से अब ये भी करप्ट होने से डर रही है। इस उहापोह में कि कैसे तस्वीरों को बिना डिलीट किए अपने से दूर करूँ, मेरे फ़ाज़िल दोस्त ने मुझे नया फ़ोन लेने की सलाह दे डाली। अगर सलाह की तरह फ़ोन भी मुफ्त में मिलता तो कोई बात ही नहीं थी।
बातें बनती गईं, रातें बीतती गईं और आज २६ नवंबर भी आ गया । उसकी शादी में बैठ कर पनीर चिल्ली का स्वाद ले रहा हूँ और ये सोच कर थोड़ा सहम जाता हूँ कि उस दिन "हाँ" कर दी होती तो आज मेरी उँगलियों में सिन्दूर होता, ना कि पनीर चिल्ली की महक। फिर भी, ये नहीं कहूँगा कि मुझे पश्चाताप नहीं है। वो तो है और जीवन पर्यन्त रहेगा, लेकिन उससे ये पूछने की हिम्मत तो ज़रूर करूँगा कि उस रात जिस बात पे तुम नाराज़ हो गई थी, क्या वो नाराज़गी अभी भी है ?
शायद तुम्हारा,
धैर्यकांत