यादगार मुलाकात
यादगार मुलाकात
अरुण वर्ग मित्रों के पुनर मिलन कार्यक्रम के सफलता से बहुत खुश था। उसने और उसके मित्रों ने जो सपना देखा था। उसे सभी मित्रों के अथक प्रयासों से सफल बनाया गया था। कार्यक्रम खत्म होने के बाद दूसरे दिन सभी मित्रगण अपने –अपने गांव लौट चुके थे। अरुण, ग़ुणवंता ने रिना को लौटते समय वर्धा में छोड़ दिया था क्योंकि उसे उसके बहन के गांव में जाना था। अरुण की पत्नी और उसका बेटा भी पूना जा चुका था। कुछ घरेलू काम-काज निपटाने के बाद अरुण भी पूना जाने वाला था। वहां उसकी नाती थी। नाणी पहिले ही पहुँच चुकी थी। नाना का इंतजार हो रहा था। उसने अभी यह सोचा था कि सभी अपने- अपने घर लौट चुके होंगे। सभी अपने- अपने दिनचर्या में लग-भग व्यस्त हो गये थे। अपनी सामान्य जिंदगी बसर करने में लगे थे। अचानक, दो-तीन दिन बाद गुनवंता का कॉल आया था।
गुनवंता: अरे अरुण, क्या कर रहा हैं ? कुछ नहीं, अरे सुन, प्रदिप और दिपा भाभी आई हैं। मेरे घर में हैं। तू , आजा, जल्दी से जल्दी से आजा।
अरूण : अरे झूठ बोल रहा हैं क्या ? कल तो मेरी और उसकी गांव में मुलाकात हो गई थी। वो मेरे साथ बैंक में भी आया था। उसने मुझे, ऐसा कुछ नहीं बतायां था।
गुनवंता: अरे सही में आया हैं। ले बात कर ले।
प्रदिप : अरे सही में आया हूं। हम दोनों आज ही अचानक आये हैं। अरे श्रीकांत का सत्कार करना हैं ना ! तू भी जल्दी से आजा। मिल के चलेंगे। चिकन बना रही हैं, तुम्हारी दीपा भाभी।
अरूण : ठिक, हैं, आता हूँ । फिर मैंने अपनी स्कुटी निकाली। और गुनवंता के घर पहुँचा। जैसे घर में प्रवेश करने के बाद, किचन में पैर रखा। तो मैं आश्चर्यचकित हुआ था !। वहां देखा कि रीना मस्त खाना खा रही थी।
रीना: अरे, ऐसे हैरान होकर क्यों, देख रहा हैं मुझे ?। अरे मैंने तुझे फोन भी किया था। मुझे लगा कि तू ही गाड़ी लेकर आ रहा हैं। जब देखा, तो प्रदिप और भाभी थी। चल अच्छा हुआ, तू आ गया हैं। ले तू भी खाना खा ले।
अरूण : अरे मैं तो खाके आया हूँ , अरे मुझे, गुनवंता ने पहिले बताना चाहिए था ना !। मैं फिर घर में क्यों खाना बनता ? वैसे भी, मैं अभी पत्नी-आतंक मुक्ति अवकाश पे चल रहा हूँ । वो तो लड़के के साथ पुना पहुँच गई हैं।
गुनवंता: अरे अरुण, कुछ तो ले। दिपा भाभी ने बनाया हैं, खाना। अरे तेरी भाभी तो स्कूल चली गई हैं । ये सब अचानक आये हैं।
अरूण : अरे दिपा भाभी ने बनाया हैं, तो खाना ही पड़ेगा! नहीं तो वह नाराज हो गई तो, गांव में जाने पर पहचानेगी नहीं !। सही में दिपा भाभी ने इस कार्यक्रम के लिए हमारी बहुत मदत की हैं। हम जीतने बार गांव गये हैं। हॉटेल प्रदिप में ही रुके थे। सभी एकदम से हँसने लगे।
दिपा : अच्छा, तो आप को हमारा घर हॉटेल लगता हैं। अरे सुनते हो, इन से जरा किराया लेना !।
अरूण : अरे भाभी जिस तरह से आपने तन- मन- धन से हमारी सेवा की, वह सेवा किसी हॉटेल में कितने भी पैसे गिनो। नहीं मिलेगी। हम पैसा तो कितना भी दे सकते हैं। लेकिन कोई इतने प्यार से मेहमान नवाजी नहीं कर सकते। मेरे इस बात से सभी सहमत थे। भोजन का कार्यक्रम निपटने के बाद हम सब श्रीकांत के घर पहुँच े थे। हम सब को देखकर वह बहुत खुश हुआ था। भाभी ने भी बहुत आदर के साथ अंदर बुलाया था। हम सब को देखकर वह भी बहुत खुश हुई थी। थोड़ी देर बाद शांता भाभी भी वहां पहुँच गई थी। कुछ इधर –उधर की बाते होने के बाद श्रीकांत के सत्कार का कार्यक्रम शुरु हुआ था। दिपा, शांता और रीना ने श्रीकांत का भारतीय परमपंरा नुसार उसका विधिवत कांता भाभी के साथ सत्कार किया था। दोनों बहुत खुश हुयें थे। मैंने और गुनवंता ने सत्कार समारोह के फोटो भी लिए थे। इन फोटो कार्यक्रम के वीडिओ में डालने को कहा था। इसकी जिम्मेदारी प्रदिप को दी गई थी। बहुत देर तक हम एक दूसरे की हँसी मजाक करते रहे थे। आनंद लुटते रहे थे। लेकिन खुश होने की एक समय सीमा रहती हैं। उसके बाद हमें न चाहते हुए भी जुदा होना पड़ता हैं। प्रदिप और दिपा भाभी को अन्य कार्यक्रम में जाना था। रीना को अपने नागपुर वाली बहन के घर जाना था। फिर सभी जाने के लिए घर से निकलने लगे थे। कांता भाभी ने, थोड़ी नाराजगी दिखाई थी क्योंकि हमने उसे आव-भगत करेने का कोई मौका नहीं दिया था। क्योंकि थोड़े देर पहिले ही सभी ने भोजन किया था।
रीना : अरे अरुण मैं तेरे साथ आऊंगी, चल किधर हैं तेरी गाड़ी । तेरे घर की तरफ ही हैं, मेरे बहन का घर, ऐसा गुनवंता बता रहा था।
अरुण : चल ना कोई बात नहीं। लेकिन मैंने कार नहीं लाई हैं। स्कूटी पर चलना होगा !। वैसे ही, जैसे कभी कवार, आया-जाया करते थे कॉलेज के दिनों में।
रीना : अरे आजकल मुझे टूव्हीलर पे जाने का बहुत डर लगता हैं। खैर तेरे साथ चलती हूँ । लेकिन इस उम्र में गिरा मत देना। उसे अभी अरुण पर विश्वास नहीं था।
अरुण : गिरा दिया तो गिरा दिया। कल के पेपर में छप जायेगा कि एक पुराने मित्र ने अपने पुरानी कॉलेज के गर्लफेंड को गिराया !। दोनों को अस्पताल में भरती कर दिया गया हैं। अभी दोनों खतरे से बाहर हैं। सब हंसने लगे थे। शायद उसके दिल में भी कुछ कहने का था, वो बोली।
रीना: कहीं ये खबर के जगह ऐसी खबर ना छ्प जाए कि एक पुराने मित्र ने अपने पुरानी कॉलेज गर्लफेंड को भगा कर ले जा रहा था। लेकिन रस्ते में दोनों का अपघात हो गया हैं। अभी दोनों साथ- साथ अस्पताल में भरती हैं। ये खबर पढ़कर वर्षा भाभी तेरी खबर लेने पहुँच जाएगी !। सभी इस बात पर जोर से हसने लगे थे।
प्रदिप : ने कहां, अरे रिना तू ने तो नहले पे दहला मारा हैं। अपना कवि दोस्त तो चारों कोने चित हो गया हैं। बाद में हम दोनों अपने- अपने गतंव्य स्थान के लिए निकले थे। जाते- जाते इधर-उधर की बाते कर रहे थे। फिर एक जगह रोड का काम चल रहा था। एक ही बाजु से आने-जाने वाले वाहन चल रहे थे। एक जगह गिट्टी पड़ी थी। उस जगह गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ नहीं रही थी। रिना ने शायद ये कहा की मैं उतरती हूँ। तू आगे रुक। लेकिन हेलमेट के कारण मैं सुन नहीं सका था। गाड़ी लेकर आगे चलता रहा। उसने आवाज भी लगाई थी, लेकिन मैं सुन नहीं पाया था। शायद मेरे दिमाग में कुछ पुरानी यादें चल रही थी। जो मैं उसके साथ करना चाहता था। लेकिन कैसे कहूँ , ये सोच कर, चुप हो जाता था। उतने में आगेवाले गाड़ी वाले ने कहां, अरे वो आपकी मैडम आप को आवाज दे रही हैं। मैं एकदम से भौचक्का हो गया था। देखा, तो वो पीछे नहीं थी। मैंने फिर गाड़ी एक बाजु में खड़ी की, उसका आने का इंतजार किया था।
अरुण : अरे तुझे बताना तो चाहिए की मैं उतर रही हूँ। वो हंसने लगी। उसे देखकर मैं भी हंसा। फिर भी मैंने उसे सॉरी कहा था।
रीना: अरे, सॉरी कहने की क्या बात हैं ?। यही तो टूव्हीलर का मजा हैं। जो तू ने बुढ़ापे में भी मुझे दिया हैं।
अरुण : देखो रीना, तू म मुझे बार-बार बुढ्ढा मत कहो, मैं ऐसे से तू झसे नाराज हो जाऊंगा !। अभी मैं जवान हूँ। अभी भी वो गाना गाता हूँ । उसके तरफ मुस्कुराकर गाने लगा। ओ मेरी जोहर- जुबी, तुझे मालूम नहीं, तू अभी तक हैं हंसी और मैं जवान !। ये गाना तुम्हारी भाभी जब मुझे बुढ्ढा कहती हैं तब मैं गाता हूं ! फिर हम दोनों मुस्कुराकराने लगे थे। अच्छा बता, तू कहां से बैठी थी, कुछ याद आ रहा हैं क्या ?
रीना: नहीं मुझे कुछ याद नहीं आ रहा हैं। मैं अपने भांजी को फोन लगाती हूँ कि हम पंजाब नॅशनल बैंक के सामने खड़े हैं। वो बार –बार फोन लगा रही थी। लेकिन उसकी भांजी फोन नहीं उठा रही थी।
अरुण : बार –बार फोन क्यों लगा रही हैं। अरे वो व्यस्त हो सकती हैं !। खुद ही बाद में फोन करेगी । आव इधर आराम से खड़े रहते हैं। बहुत देर बाद उसका फोन लगा। हम उसका इंतजार कर रहे थे। वास्तविक हम दोनों एक दूसरे से कुछ खास बात करने का इंतजार कर रहे थे। कहने कि कोशिश दोनों कर रहे थे। लेकिन कोई शुरुआत नहीं कर रहा था। पहिले तू। पहिले तू में समय बीतता गया। लेकिन जो कहना चाहते थे। वो हम दोनों ही नहीं कह सके !।
पहिले दिल जो कह न सका,
वो कहने का मौका आ गया,
लेकिन दिल फिर भी कुछ कह ना सका !।
इतने में उसकी भांजी आ गई थी। फिर वो हँसते -हँसते, बॉय-बॉय करते-करते जली गई थी। दिल के अरमान दिल में ही दबे रह गये थे !। फिर, मैं भी अपने घर लौट आया था।
