यादें !
यादें !
अक्सर खींचे चले जाते है उन गलियों में, जहां कभी हम गुजरा करते थे। वो उसका मुझे देखना और चेहरे पे वो प्यारी सी मुस्कुराहट लाना। और उसे मुस्कुराता देखने को मेरा हर रोज वहां से गुजरना। कुछ अजीब सी कशिश थी उसमें, जो उसकी तरफ जाने से खुद को मै रोक ही नहीं पाता था और शायद रोकना भी नहीं चाहता था।
वो दिल का जोरों से धड़कना और चाहते हुए भी उससे कुछ ना कह पाना। आज भी जब गुजरता हूं उन रास्तों पे, तो दिल कुछ ठहर सा जाता है मानो कुछ पल यादों में खोना चाहता है। अकेले रहने पे उसके ना होने का और उसके साथ होने पे उसे खोने का डर का हमेशा लगा रहना।
उसके कपड़ों से उस प्यारी सी महक का आना जो शायद बस मेरे लिए ही थी। वो उसका अपने दुपट्टे से मेरा पसीना पोछना, और मना करने पे रूठ जाना और फिर खुद ही मान जाना, आखिर मनाना जो नहीं आता था मुझे। मेरे लिए किसी से भी लड़ जाना, और गुस्सा होने पे मुझे सुनाना।
आज भी गुजरता हूं मै उन गलियों, रास्तों से बस फर्क इतना है कि अब वो नहीं मिलती। रुक जाता हूं बस इस उम्मीद में कि शायद उसे फिर से देख पाऊ। और अगले पल मेरा मायूस होकर लौट जाना। नज़रें जरूर भटकती है इधर उधर, पर मानो उसके सिवा कुछ और देखना ही नहीं चाहता।
शायद कभी फिर से देख सकूं उसे जिंदगी में यूं भटकते भटकते। जो ये किस्मत में लिखा है भगवान ने, तो ये भटकना भी मंजूर है मुझे।

