इक पत्र, अज्ञात के नाम!
इक पत्र, अज्ञात के नाम!
कुछ विशेष मिलना नहीं हुआ तुमसे, पर ना जाने क्यों तुम हर पल मेरे ह्रदय मे बसती हो। ऐसा प्रतीत होता हैं मानो बरसों से तुम्हारी ही प्रतीक्षा हो। ऐसा नहीं हैं कि पहली बार किसी से मिला हूं पर तुमसे मिलके जो अनुभूति हुई, वो पूर्णतया भिन्न थी। तुम्हारा वो चंचल मन, बच्चों सा व्यवहार करना, उसके प्रति मै ज्यादा आकर्षित हुआ। जीवन मे परिपकवता का होना बहुत महत्वपूर्ण हैं पर मेरी समझ से जो इंसान अपने अंदर के बालकपन को पूर्णतया समाप्त करके, परिपक्व हो जाता हैं, वो दूसरों को सुख तो दे सकता हैं परन्तु स्वयं कभी सुख कि, शांति की अनुभूति नहीं कर सकता।
और मै तुम्हे सुख, दुख और शांति की सबकी अनुभूति करते देखना चाहता हु। मै इस बात से सहमत हु की जीवन के कुछ हिस्से तुम्हारे लिए सरल नहीं थे और शायद इसीलिए तुम्हारा इन सबपे अब विश्वास नहीं है। पर ये सब तो जीवन का आधार है। मै भी इस बात का वचन नहीं दे सकता की जीवन मे हमेशा तुम्हे सुख दूंगा। क्युकी ऐसा कहना गलत होगा। तुम्हे मेरे साथ सुख की भी अनुभूति होंगी, दुख की भी, कभी हम इक दूसरे से रूठ भी जाया करेंगे। परन्तु मै इस बात का वचन देता हूं की जीवन मे कुछ भी उथल पुथल हो जाये, कैसी भी स्थिति का सामना करना पड़े, हम हमेशा साथ होंगे। औरों के जैसे मै कोई कामदेव जैसा आकर्षित चेहरा नहीं रखता। मै तो बस महादेव का भक्त हु और जैसा भी हु, अपने आप को अपनी नजरों मे बहुत महत्वपूर्ण स्थान देता हु।
ये आवश्यक नहीं की तुम मेरे साथ ही रहो। मै बस इतना आग्रह करता हु की स्वयं को अवसर दो, किसी को तुम्हे सच्चे दिल से प्रेम करना का, फिर चाहे वो कोई और ही क्यों ना हो।
इसलिए आज इक पत्र लिख रहा हूं तुम्हे अपनी भावनाओं से अवगत कराने के लिए। तुम्हारी सहमति के बिना तुम्हारा नाम नहीं लिख सकता हूं, इसलिए इक पत्र लिख रहा हूं, अज्ञात के नाम। और जो तुम्हे मेरे पत्र से दुख हुआ हो और तुम मेरे सुझाव के पक्ष मे नहीं हो तो ये समझ लेना कि...
इक अज्ञात ने पत्र लिखा है, इक अज्ञात के नाम।