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Harish Bhatt

Tragedy

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Harish Bhatt

Tragedy

व्यथा

व्यथा

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हे प्रभु बस इतना करवा दो, लगना लगाना तो दूर बस में जितना हूं मुझे जीने दो। इंसान को समझाओ और मुझे ना कटवाओ। मिट्टी बिगड़ गई तो सब पानी पानी हो जाएगा। और मिट्टी को जितना मैं जकड़ कर रख सकता हूं, उतना सीमेंट नहीं कर सकता। प्राकृतिक संतुलन के नजरिए से मेरा जिंदा रहना उतना ही जरूरी है जितना जीने के लिए हवा और पानी। मानव खुद जनसंख्या पर रोक लगा नहीं सकते और मुझ पर कुल्हाड़ी चलाने के जुगाड़ में लगे रहते हो। इतनी छोटी सी बात भी समझ में नहीं आती कि पहले मुझे घर के आंगन से कटवाते हो और बाजार में जाकर लू से बचने के लिए मैंगो की तलाश करते हो। गजब का दिमाग फिट किया है इंसान में आपने। दांत हिलते ही नीम की दातुन ढूंढने वाले पेड़भक्षी इंसान को कब अक्ल आएगी यह तो आप जानिए प्रभु। ऐसा भी क्या गुनाह कर दिया मैंने घर बढ़े इंसान का और कुल्हाड़ी चले मुझ पर।


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