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साहित्यिक स्पंदन सितम्बर 2021 अंक धरोहर विशेषांक गुरु/बाबा आपको समर्पित करने की इच्छा बलवती हुई तो आपसे सम्बंधित संस्मरण, आलेख, आपकी लिखी रचनाओं की समीक्षा इत्यादि आमंत्रित की। आप जान लीजिये.. संस्था के मात्र दो पुरुष रचनाकारों ने श्रम किया तो हम पन्द्रह महिला रचनाकारों ने प्रयास किया!
आपको याद है पाँच साल पहले जब संस्था के स्थापना दिवस के दिन केवल महिलाओं की संस्था होने की घोषणा की थी तो आप अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि क्या सृष्टि, सृजन, परिवार, समाज या देश एक लिंग से चल सकता है । क्या आप (तब हम पूरी तरह एक दूसरे से परिचित नहीं थे। हमारी भेंट हुए छः महीने गुजरे थे) गाड़ी एक चक्के से चलाना चाहती हैं ?
तब मैंने जबाब दिया था कि, "क्या करती मैं ? मैं अभियंताओं से परिचित हूँ, मेरे पति महोदय अभियंता हैं और उन्हें हाइकु का मजाक उड़ाने में बहुत आनन्द आता है। वे हाइकु के लिए अनुवादक रखने का सलाह देते हैं तो उनके मित्र भी उनका ही साथ देते हैं। वे तो संस्था सदस्यता से दूर ही भले।"
तो आपने कहा था कि "मैं हूँ न!"
"तो ठीक है । केवल महिलाओं की संस्था नहीं होगी।" मेरे इस घोषणा के बाद गुंजन जी भी अपने को शामिल करने के लिए कहा और सदैव सहायता करने के लिए तैयार रहे। एक समय में संस्था में पुरुष साहित्यकारों की सदस्यता ज्यादा रही । लेकिन... जब भी कोई कार्यक्रम होता महिला साहित्यकारों की ही उपस्थिति ज्यादा होती । बाहर से जो अतिथि साहित्यकार आते वे महिलाओं की ही संस्था मानते। अरे मानते क्या बाहर में चर्चा करते तो महिलाओं की ही संस्था कहते। एक नन्हीं बच्ची की तरह मैं आपके पास ठुनकते हुए शिकायत लेकर पहुँच जाती। आप हँसते हुए कहते "हवा में की गई बातों का पीछा नहीं करते..! जिस संस्था का मैं अभिभावक हूँ वह संस्था केवल महिलाओं की कैसे हो जाएगी? और विश्वास रखो जो जो मुझसे-तुमसे स्नेह रखते हैं , मुझपर-तुमपर विश्वास रखते हैं एक दो भी जरूर होंगे जो समय पर तुम्हारे आजूबाजू खड़े मिलेंगे! तुम्हारे धैर्य का मैं सदैव कायल होता हूँ, मेरे सामने भी कमजोर मत पड़ा करो.. !"
आपसे जब भी फोन पर बात होती, हैल्लो कहने और प्रणाम आशीर्वाद के बाद आप मेरा हाल बाद में पूछते पहले संस्था के सभी पुरुष सदस्यों का हाल-चाल पूछते, अभिलाष, रवि, नसीम, राजेन्द्र, संजय सब कैसे हैं ? सब स्वस्थ है न? सबका सृजन खूब फले। तब महिलाओं की जानकारी लेते , अन्त में मेरी बारी आती। वैसे सारा सस्नेहाशीष मेरे हिस्से में ही आता। आप बाखूबी जानते थे, माँ को खुश करने के लिए उसके बच्चों को ज्यादा प्यार दुलार करना पड़ता है। आपकी बहन आपकी सदैव ऋणी है। मेरे इतना कहने पर , भाई बहन में ऋण नहीं चलता आपका कहना, हिसाब बराबर नहीं करता...