वर्दी

वर्दी

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मिलिट्री एकेडमी के विशाल प्रांगण में सारे केडेट पासिंग आउट परेड के लिए जमा थे। आज उनके अभिभावक भी आये थे।

ऑफिसर ने बेस्ट कैडेट जिसको' सोर्ड ऑफ़ ऑनर 'मिलने वाले रोहित की माँ सुलेखा से मिल कर जब उन्हें बधाई देनी चाही तो धन्यवाद देने के लिए उसकी आवाज़ ही न निकल सकी। बस आँखें छलछला गयीं और सर झुका अभिवादन ही कर पाई।

वह तो अतीत में मग्न हो गयी थी। वर्षों पहले विवाह के बाद पति तो अक्सर सीमा पर ही तैनात रहते। छुट्टियों में ही घर आते। देश प्रेम की ही बातें होती। कहते -''मैं अपने बच्चों को भी सेना में ही भेजूंगा। अगर मैं न रहूँ तो तुम मेरी इस इच्छा का मान रखना ''यह तुम्हारा अपने देश के प्रति प्यार और सम्मान होगा ''अक्सर पत्रों में भी यही बात होती।

और तब कुछ ही वर्षों का साथ देकर अचानक राघव कारगिल युद्ध में देश के काम आ गए।

आँगन में तिरंगे में लिपटा राधव चिर निद्रा में घर लौटा था। परिवार और अड़ोस- पड़ोस के लोग आँखों में आँसुओं को बरबस रोकने की कोशिश कर रहे थे, सभी के दिलों में उसकी कोई कोई बात सर उठा रही थी। उसकी अंतिम विदाई का पल आ चुका था।

माँ निढाल सी हो रही थी। पत्नी सुलेखा तो मूर्छित हो गयी थी। पांच साल का बेटा रोहित तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था, कभी अंदर आता तो कभी बाहर दौड़ जाता। सभी सान्त्वना देने उसके सर को सहला देते। तभी बाहर से आकर किसी ने अंतिम दर्शन कर पुष्पांजलि देकर राघव को विदा करने को कहा। पड़ोसनें सुलेखा को होश में लाने का प्रयास कर रही थी।

सुलेखा एकदम उठी और अपने कमरे की और जाने लगी। वह हाथ में कुछ चिट्ठियाँ और राघव की वर्दी लेकर सीधे आँगन में दौड़ गयी। राघव के सीने में सब कुछ रख कर बोली -

''तुम मुझे यों मंझधार में छोड़ कर जा रहे हो..अब मैं ही तुम्हारी इच्छा को पूरा करूंगी। "

तुमने तो देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर अपना कर्तव्य पूरा लिया। अब मैं तुम्हारी बात पूरी कर देश सेवा के लिए प्रयत्न करूंगी '.ये मेरा वादा रहा ''

तब से वह हर रात राघव की वर्दी को लेकर ही सोती ताकि वह वादा न भूल जाए। रोहित को भी पिता की बातें सुनाती।

तभी उसके बेटे का बेस्ट केडेट के रूप में नाम का उद्घोष हुआ। बेटे ने उसके पैर छुए तो वह वर्त्तमान में लौटी बेटे को आशीष देते हुए उसका चेहरा चमक उठा और बैग से वर्दी निकाल माथे

से लगा कर बोली

" रोहित! अब तुम्हें भी अपनी वर्दी का मान रखना है।"


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