ANURADHA BHATTACHARYA

Abstract Inspirational

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ANURADHA BHATTACHARYA

Abstract Inspirational

"वृद्धाश्रम"

"वृद्धाश्रम"

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हर रोज क्यों इसी तरह रोती रहती है तू? न ही किसी जंगल में है, न ही तू अकेली है। यहां हम सब इकट्ठे हंसी मज़ाक करते हुए कितने अच्छे से रह रहे हैं, फिर भी तू इतनी दुखी क्यों होती है, समझ में नहीं आता है।

गौरी की बात पर सहमत हो कर रमोला बताती है, सही में, तेरा ये हर रोज का रोना-धोना अच्छा नहीं लगता है। यहां तुझे क्या तकलीफ़ है ये तो बता।

नीलीमा आंसू पोंछ के, धीरे से पूछती है, सही में तुम लोगों को अपने परिवार, बेटे- बहू, पोता- पोती, से बिछड़ कर दुख नहीं होता है? उन सब की यादें तुम्हें सताती नहीं?

कमरे से निकल कर बगीचे की ओर जाते हुए नीलीमा की ये सारी बातें रचना को सुनाई देती हैं।

रचना आकर नीलीमा के पास बैठती है। फिर बोलती है, तुम्हें दुख पसंद है, इसीलिए तुम दिनभर दुख में ही डूबी रहती हो। खुश रहना, या दुखी होना ये तो तुम्हारे हाथ में है। तुम जैसा सोचो गी वैसा फल पाओगी। अच्छा एक बात बताओ, शादी के बाद मां, बाबा, भाई, बहन, अपना घर-- सबकुछ छोड़कर जब अनजान किसी नयी जगह पर, अनजान कुछ लोगों के साथ रहने के लिए जाना पडा, तब भी ऐसा ही दुख हुआ था क्या? 

विशाखा ने पौधें में पानी देते हुए बोलती है, तब भी तुम इसी तरह मां, बाबा को, तुम्हें अपने घर से निकाल दिया करके दोष दिया था क्या , जैसे अभी

अपने बेटे-बहू को दोष दे रही हो?

नीलीमा को गुस्सा आता है। बोलती है -- दोनों एक ही बात है क्या?

विशाखा हंसते हुए बो‌लती है, --- काफी एक जैसा ही तो है। देखो, समय के साथ साथ अगर अपना सोच बदल नहीं सकती तो जिंदगी भर ऐसे ही दुखी रहोगी। पुराने ज़माने में एक नियम था, बुढ़ापे में मतलब, बच्चे बड़े होने पर जब उनका संसार बस जाता था , तब मां , बाबा को संसार में कोई काम नहीं रहता था। तब उनको संसार छोड़कर कहीं आश्रम में चले जाना होता था , नहीं तो संन्यास ले के तीर्थ स्थल पर चले जाते थे। अब सोच लो, वही नियम नए रूप मे वापस आया है। अगर इसे अपना सकोगी तो खुश रहोगी।


इन लोगों की बातचीत चलने दीजिए, चलिए तबतक हम इन सबके बारे में थोड़ी जानकारी ले लेते हैं। ये लोग "शांतिनिकेतन" नाम के एक वृद्धाश्रम में रहते हैं।


दस साल पहले देबीका ने अपने ही मकान को अपनी दो सहेलियों को साथ लेकर एक वृद्धाश्रम बनाने की शुरुआत की थी। धीरे धीरे वहां के मेम्बर बढ़ते गए ।


पति और एक बेटे के साथ, देबीका का एक सुन्दर, सुखी परिवार था। बेटे की पढ़ाई खतम होने के बाद उसे विदेश में अच्छी नौकरी मिली। फिर कुछ साल बाद , शादी करके उसने अपने बीबी बच्चे को साथ लेकर वहां विदेश में ही अपना संसार बसा लिया। दस साल पहले जब देबीका के पति का देहांत हुआ तब बेटे और बहू ने देबीका को अपने साथ विदेश ले जाने की बात की, पर देबीका राज़ी नहीं हुई।

--- नहीं नहीं । मुझे विदेश नहीं जाना है। 

--- क्यों मां ?

--- में वहां नहीं रह पाऊंगी।

---- पर मां , तुम यहां अकेले कैसे रहोगी?

---- आप को इस तरह यहां अकेले छोड़ कर हम भी वहां शांति से नहीं रह पाएंगे। हमेशा आपकी चिंता हमें सतायेगी।

--- तुम्हें कभी कुछ जरूरत हुई, या तुम बीमार पड़ी तो वहां से हम तुरंत तुम्हारे पास नहीं पहुँच पाएंगे। उसके बारे में कुछ सोचा?

---- इतना मत सोच। अगर तबीयत बिगड़ी, या बीमार पड़ी तो देख-भाल के लिए डॉक्टर बोस है न।

---- ये कोई बात हुई ! इतने दिन आप और बाबा एकसाथ थे। फिर भी आप दोनों के लिए हमें चिंता लगी रहती थी। आज तो आप यहां बिल्कुल अकेले ---

--- देबीका ने बहू की बात खतम होने नहीं दिया। कहती है, तुम्हारे साथ जाऊंगी तो वहां भी मुझे दिनभर अनजान जगह पर अकेले ही रहना पड़ेगा। तुम सब अपने अपने काम से दिन भर बाहर ही रहोगे, मुझे वहां बातचीत करने के लिए भी कोई नहीं मिलेगा। इस से अच्छा है कि मैं अपनी जगह पर ही खुश रहूंगी।

--- मां, फिर भी तुम ---

--- देखो मेरा एक सुझाव है। अगर तुम दोनों राज़ी हो तो मैं बताऊं?

--- कैसा सुझाव? बेटा पूछता है।

--- मेरी बचपन की दो सहेलियां हैं। जो बिल्कुल अकेले रहती हैं और सोच रही है कि वो दोनों किसी वृद्धाश्रम में जा के रहें।

--- आप भी क्या वृद्धाश्रम में जाने की सोच रहे हैं ? व्यथित हो कर बहू ने पूछा।

--- नहीं । मैं अपने मकान को ही वृद्धाश्रम बनाने की सोच रही हूं। मेरी सहेली गौरी के इकलौती बेटी है। गौरी बेटी के पास उसके ससुराल में जाके नहीं रहना चाहती है। और दूसरी सहेली विशाखा के दो बेटे में से एक दिल्ली और एक पूणे में सेटेल्ड है। कोई यहां वापस नहींआनेवाला। अब दोनों बेटो के पास कभी ईधर, कभी उधर करके वो नहीं रहना चाहती है। अगर मैं मेरी दोनों सहेलियों को मेरे साथ यहां रहने के लिए बताऊं तो हम तीनों एकसाथ आनन्द से रह सकेंगे।

--- पर मां, वो दोनों अपना अपना घर छोड़कर यहां आकर क्यों रहेंगी?

--- बोला न, वो दोनों अपना घर बेचकर वृद्धाश्रम में जाकर रहने के लिए सोच रही हैं। अब मैं उन दोनों को मेरे घर को वृद्धाश्रम सोच कर यहां रहने के लिए बताऊं तो वो दोनों खुश होकर आ जायेंगी।

--- बहू को मम्मी की ये सोच अच्छी लगी। बोलती हैं, अगर आप तीनों सहेलिययां एक साथ रहोगे तो ठीक है। आप ओर खुश रह पायेंगे।

--- पर बेटा सहमत नहीं हुआ। कहता है--  मम्मी, वृद्धाश्रम बोलो या तुम तीनो सहेलियां ही बोलो, तुम सब की उमर हो चुकी है, अब सब की देखभाल करना, खाने पीने का बंदोबस्त करना , ये सब इतना आसान काम नहीं है। ये बहुत जिम्मेदारी का काम होता है।

---- देखो बेटा, ज्यादा सोचोगे तो कोई भी काम नहीं कर पाओगे। हमारी देख-भाल , मतलब बीमार या तबीयत खराब हुआ तो उसके लिए डॉक्टर बोस है।वो तो पास ही रहते हैं। और हमारे यहां उनका आना जाना भी रहता ही है। घर का काम काज और बाज़ार या बाहर के दूसरे कामों के लिए रतन और उसकी बीबी भी है। जो बहुत सालों से मेरे साथ है। अब रही , खाना बनाने वाली कोई चाहिए। वो भी मिल जाएगी। रतन की बीबी किसी से इस बारे में बात कर चुकी है।

बेटा आश्चर्यचकित होकर कहता है,--- मां, तुम ने तो सब कुछ तैयारी कर रखी है !

--- देखो बेटा, तुम गुस्सा मत करो, न ही दुखी होना।

तुम दोनों चाहे जितना भी जतन क्यों न करो, वहां, विदेश में मुझे बिल्कुल खुश नहीं रख पाओगे।

इसीलिए यहां जिस तरह मैं खुश रहूंगी, वैसा ही रहने के लिए मैंने सोचा। अब तुम दोनों बताओ ।


मम्मी उनके साथ जाना नहीं चाहती हैं, ये जानकर दोनों को दुख तो होता है, पर उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उनको दुखी भी नहीं करना चाहते थे। इसीलिए मकान को वृद्धाश्रम बनाने के लिए, शुरुआत में जितना बंदोबस्त करना था , करके दिया। फिर वे विदेश लौट गए।


वृद्धाश्रम की शुरुआत हुई थी तीन सहेलियों को लेकर, फिर धीरे धीरे मेम्बर बढ़ने लगे।


नीलीमा वृद्धाश्रम में आई है एक महीने पहले। पर अभी तक वो अपना मन यहां नहीं लगा पा रही है।

घरवालों से दूर रहने का दुख उन्हें हमेशा सताता है।

पर उनका इस तरह दुखी होना, घरवालों के लिए हमेशा रोना, यहां किसी को पसंद नहीं आता है। रमोला कहती है, --- तू क्यों इतना दुखी रहती है ये मेरी समझ में नहीं आता। यहां तुझे किस चीज़ की कमी है?

--- बहु की गालियां नहीं मिलती है, कामवाली की तरह दिन भर काम नहीं करना पड़ रहा है, बेटे- बहु के लिए तरह तरह का खाना नहीं बना पा रही है। इसी बात का दुख है। है न नीलीमा दी? अच्छा एक काम करो, तुम कुछ दिन हम सब को खाना बना के खिलाओ।। खिलाओगी न? रचना कहती है।

विशाखा बोलती है, -- तुमने जब अपना घर बसाया, तब तुम्हें रोकने- टोकने के लिए तुम्हारे सास, ससुर कोई नहीं थे तुम्हारे साथ। तुम जैसा चाहती थी वैसे ही अपना घर बसाया। अपने मन के हिसाब से अपने बेटे को पाला, बढ़ा किया। अब तुम्हारी बहु जब अपने हिसाब से अपना घर बसाना चाहती है, अपने हिसाब से अपने बेटे को बढ़ा करना चाहती है, तब तुम बहु को किस बात का दोष दे रही हो?


अब सब ने एक एक करके यहां वृद्धाश्रम में आने की अपनी अपनी कहानी बताने लगी।


रमोला कहती है, मैं तो अपनी इच्छा से ही यहां आई हूं। अपने संसार में मैं खुश थी, पर आजकल की अदब कायदे के साथ में एडजस्ट नहीं कर पा रही थी। इसीलिए मैं यहां आई हूं।

गौरी आवाज देती है --- समझी नहीं।

देखो, बहु घर में जिस तरह की कपड़े पहनती है वो मुझे पसंद नहीं। पर उस कपड़े में उसे काम करने मे आसानी होती है। तो इस बात पे मुझे कुछ बोलना नहीं चाहिए ‌। हमेशा हर बात पे मियां-बीबी झगड़ते रहते हैं। जो मुझे अच्छा नहीं लगता।पर ये उनका आपस का मामला है , मैं उसमें दखल नहीं दे सकती। क्या पता, शायद ये झगड़ना ही उसका प्यार है। बहु आफिस में काम करती है।घर, दफ्तर, बच्चे सब एकसाथ सम्हालते हुए वो भी कभी कभी चिड़ जाती है।और अपना गुस्सा बच्चे पर उतारती है।जो हमें सहन नहीं होता, पर कुछ बोल भी नहीं सकती थी। सोचती थी अगर किसी दिन मैं गलती से कुछ बोल दूं तो घर की शांति टूट जायेगी। इसी लिए मैंने घर से दूर रहना ही ठीक समझा।

नीलीमा पूछती है, --- बच्चों से दूर रह कर तुम्हें दुख नहीं होता?

--- दुख किस बात का? हर रोज़ विडियो कौल करते ही रहते हैं। छुट्टी के दिन आकर मिल के भी जाते हैं। और यहां मेरा समय कब कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता। मुझे तो कोई दुख नहीं होता।

नंदा कहती है, --- मेरे एक बेटा और एक बेटी है। दोनों ने ही कहां कि मुझे जब जिसके साथ रहने का मन होगा , मैं उसके साथ ही रहूं। पर घर में रहने से तुम चाहो या न चाहो कुछ कर्तव्य सर पर आ ही जाता है। और अब मुझे घर के काम-काज, कर्तव्य से छुटकारा चाहिए। इसीलिए मैं दोनों में किसी के साथ रहने से यहां रहना ही बेहतर समझती हूं। यहां मैं बहुत खुश हूं।

--- रचना तेरे भी तो दो बेटे हैं।

--- हां हैं। पर दोनों ही विदेश में रहते हैं। एकबार मैं गई थी दोनों बेटों की खुशी के लिए। पर मुझे वहां बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। मैंने दोनों बेटों को बता दिया कि मैं उनके साथ विदेश में नहीं रह पाऊंगी। तब दोनों ने ही बताया , अगर विदेश में नहीं रहना चाहती हो ठीक है, पर अपने घर में भी अकेले नहीं रह सकोगी। अच्छा है कि वृद्धाश्रम में जाके रहो। वहां साथी मिलेंगे, देख भाल ठीक से होगी। हम भी तुम्हारे बारे में थोड़ा निश्चिंत होकर रहेंगे। और सही में , मैं यहां बहुत खुश हूं।

नंदा, तेरा बेटा तो इसी शहर में ही रहता है। फिर भी तेरा ठिकाना ये वृद्धाश्रम में क्यों?

--- कारण तो एक ही है। घर में सब होते हुए भी वहां मैं अकेले ही थी। बेटे-बहु, पोता-पोती सब अपने अपने काम में व्यस्त रहते हैं। किसी को किसी के साथ बात करने का भी समय नहीं है। रात को या छुट्टी के दिन भी, कभी एकसाथ खाना खाने को नहीं बैठ पाते। घर में सब होते हुए भी अकेला पन मुझे खा रहा था। इसीलिए मैंने यहां आकर रहने का प्रस्ताव दिया। बच्चे पहले राज़ी नहीं हो रहे थे, पर बाद में मैंने उन्हें माना लिया। अब यहां सब मेरे अपने है ,और मैं दिन भर सबके साथ बहुत खुश रहती हूं।

नीलीमा कहती हैं, पता नहीं तुम लोग परिवार छोड़ कर कैसे सुख की नींद सोते हो।

नंदा कहती है,---- कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। हमसब सुख से नहीं, शांति से रहने के लिए 'शांतिनिकेतन' में आए हैं। और मन की शांति के लिए जब , जो या जितना मिलता है उसी से ही खुश रहना जरूरी होता है। जब खुश रहोगे, तब सुख भी मिलेगा। तुम इतना रोओगी तो तुम्हें सुख की नींद कहां से मिलेगी?

---क्या बात है, आज सब इकट्ठे बैठकर किस बात की मीटिंग कर रहे हैं? आगे कोई प्रोग्राम है क्या? पूछते हुए राधा आके सब के साथ बैठती है।

--- प्रोग्राम ये है कि नीलीमा दी की आंसुओं की धारा से हम सब बहे जा रहे हैं । अब उसे कैसे रोक सकते हैं, हमसब इसी का प्रोग्राम बना रहे हैं।

-- एक महीना हो गया अभी भी तुम रो रही हो नीलीमा ! इन सब के साथ रहते हुए भी तुम खुश नहीं हो?

--- आपको क्या ? आप तो इस 'शांतिनिकेतन' की अतिथि हो। सुबह आती हो, शाम को वापस घर चली जाती हो। आप तो नसीब वाले हो।

--- ये तुमने सही कहा। शायद पिछले जनम में मैंने कुछ ज्यादा ही पुण्य कमाया था।

--- गौरी कहती हैं, अच्छा राधा, तुम्हें एक बात पूछना चाहती थी , पूछूं क्या?

--- अरे, पूछो ना, क्या जानना चाहती हो?

--- ये ही की तुम जो हर रोज सुबह आती हो शाम को घर वापस चली जाती हो, इसका राज़ क्या है?

--- राधा थोड़ी मुस्कुराते हुए,---' राज़ '--- थोड़ी देर चुप रहकर, एक जोर से सांस छोड़ती है। फिर बोलती हैं, मेरा इकलौता बेटा समय से पहले ही हम सब को छोड़कर चला गया। उसके जाने के बाद उसके ही ऑफिस में बहू को नौकरी मिली। अब हर सुबह वो ऑफिस जाती है, लौटती है शाम को। पोती का स्कूल घर से थोड़ी दूर है। उसे स्कूल से लाने की जिम्मेदारी बहू मुझ पर छोड़ना नहीं चाहती। स्कूल के बाजू में एक क्रेच है। स्कूल छुट्टी के बाद गेट कीपर उसे क्रेच में छोड़ देता है। बहू का कहना है ,अगर दिनभर मैं घर में अकेले रहूं तो धीरे धीरे मन की बिमारी की शिकार हो जाऊंगी । इसीलिए वो हर रोज मुझे यहां छोड़ जाती है, शाम को ऑफिस के बाद वापस गुड़िया के साथ मुझे भी घर ले जाती है। सही में दिनभर तुम सब के साथ हंसी मजाक में समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता है।

--- "तो ये शांतिनिकेतन सब को शांति दे रहा है" कहने के साथ हंसते हुए देबीका आ के बैठती हैं।

--- हां, नीलीमा दी को छोड़कर हम सब यहां शांति में ही है।

--- अरे नीलीमा, अकेले बच्चे को बढ़ा करने में तो तुम जिंदगी की सारी खुशियां भूल गईं। कितना अच्छा गाना गाती थीं। अब फिर से गाना शुरू कर दो। अभी तो समय ही समय है।

--- गाना तो कब की भूल चुकी हूं। अब आवाज़ ही नहीं निकलेगी।

--- कुछ दिन रियाज़ करो , देखो पहले जैसा ही गा पाओगी। और तुम खुश भी रह पाओगी।

--- नही अब और मेरा गाना नहीं होगा।

---- कैसे नहीं होगा ! रचना, नीलीमा को पुराने फार्म में लाने की जिम्मेदारी तेरी है।

--- ठीक है। वादा करती हूं, अगले प्रोग्राम में नीलीमा दी गाना ज़रूर गायेंगी।

नीलीमा कुछ बोलने जा रही थी इतने में देबीका का फोन बाजा। देबीका ने फोन आन करके देखा बेटे का फोन।

--- एक मिनट प्लीज, बोल के फोन उठाती है।

हां बेटा बोल। 

--- मां तुम कैसी हो?

---- अच्छी हूं। यहां पिछले छः महीने में दो मेम्बर और बढ़ गये।

--- अगले महीने दस दिन की छुट्टी पर हम घर आ रहें हैं।

--- ये तो अच्छी बात है।

--- तुम्हारे 'शांतिनिकेतन' में हमारे लिए जगह मिलेगी क्या?

--- ये कैसी बात हुई? जो नया रुम बनाया सब नीचे जमीन पर ही बनाया। ऊपर में तुम्हारा कमरा जैसा था वैसा ही है।

--- मैं ने तो मज़ाक किया। तुम्हारी बहू तो तुम्हारा ' शांतिनिकेतन ' देखने के लिए तरस रही है।

ठीक है, अभी रखता हूं। अगले महीने मिलते हैं।

--- ठीक है बेटा, खुश रहना।

देबीका फोन रखते ही रमोला पूछती है --- बेटा आनेवाला है? अकेले या परिवार के साथ।

--- हां, परिवार के साथ। अगले महीने दस दिन की छुट्टी पर आ रहा है।

गौरी कहती है, -- तब उस समय तू बहुत ब्यस्त रहेगी बेटे बहु के साथ।

---- क्यों? मैं अकेले क्यों, हम सब इकट्ठे खुशी मनायेंगे बेटे बहु के साथ।

--- वो जब आयेंगे, हम 'शांतिनिकेतन 'को फूलों से सजायेंगे। आंगन में रंगोली बनायेंगे। अच्छे से उनका स्वागत करेंगे। रचना कहती है।

रमोला कहती है, ठीक कहा तूने। उनका तो अच्छे से स्वागत करना ही चाहिए। उसके कारण आज हम सब इकट्ठे इतनी खुशी में रह रहे हैं। अगर उन्होंने इजाजत न दी होती तो ये 'शांतिनिकेतन' की शांति हमें कहां से मिलती !

सब मिलकर देबीका को घेरे हुए खुशी से उछल पड़े।



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