वृद्धाश्रम का अनाथालय से मिलन
वृद्धाश्रम का अनाथालय से मिलन


"क्या सोच रहे हो? कल्पेश भाईसाहब, चाय तो शरबत कर ली। " उनके रूममेट शंभूनाथ जी ने कल्पेशजी से कहा।
"कुछ नहीं, बस बच्चों ने ऐसा क्यों किया? मैं उनके लिए बोझ हो गया था क्या?" चश्मा उतारकर आँसू पोछते हुए कल्पेश जी ने कहा।
"तुम फिर पुरानी बातें लेकर बैठ गए, मैं तो खुद सब चीजों को छोड़कर यहाँ आया हूँ। " शंभूनाथ जी ने कल्पेश जी को समझाते हुए कहा।
"नहीं, बस आज पत्नी को स्वर्ग सिधारे नौ साल हो गये। उसके जाते ही सालभर बाद से मेरी बेकद्री शुरू हो गई। बहू तो ठीक है दूसरे घर से आई है पर बेटा तो मेरा अपना खून था। उसने ही...." उनका गला रूंध गया।
कल्पेश जी की पीठ पर हाथ फेरते हुए शंभूनाथ जी ने कहा "तुम्हारा तो एक ही बेटा है पर मेरे तो दो-दो बेटे हैं वो भी नालायक और स्वार्थी। दोनों झगड़ते थे। समझा समझा के हार गया आखिरकर मैंने दोनों को अलग कर दिया। सबका हिस्सा बाँटकर यहां अनाथालय आ गया। इतने बड़े परिवार के बीच भी मैं अकेला था और यहाँ भरापूरा परिवार मिल गया। नहीं आती मुझे उन लोगों की याद।"
तभी अनाथालय की संचालक उन दोनों से बोली आप लोगों को यहाँ के मशहूर फन पार्क ले चलेंगे जहां जाकर आपको अपना बचपन याद आ जायेगा।
कल्पेश जी जाने को राजी नहीं पर शंभुनाथ जी ने उनको जबरदस्ती चलने को राजी कर लिया। अगले दिन वृद्धाश्रम सभी बुजुर्ग अपने संचालक और देख-रेख करने वालों के साथ फन पार्क में गए। फन पार्क में आकर वृद्धाश्रम के सभी बुजुर्ग बच्चे बन गए। कोई बुजुर्ग झूला झूलता,कोई बुजुर्ग कठपुतली शो देखता।
कल्पेश जी का मन इस सबमें नहीं लग रहा था वह एक कोने में पड़ी कुर्सी में बैठ गए और अतीत की यादों में गोते लगाने लगे तभी वहां उनके नजदीक एक गेंद आकर गिरी। वहां दो-तीन बच्चे उस गेंद को ढूंढते हुए आए कल्पेश जी ने उन बच्चों को गेंद देकर भगा दिया। बच्चे गेंद लेकर चले गये।
उन बच्चों को देखकर कल्पेश जी ने अपने जेब से अपने पोते की फोटो निकाली और उस फोटो पर हाथ फेरते हुए रोने लगे और सोचने लगे अगर वह भी अपने पोते के साथ रहते तो वह अपने पोते के साथ ऐसे ही खेलते। यह सोचते-सोचते ही वह फफक फफक के लोग पढ़े। उनको रोता देख शंभूनाथ जी कठपुतली नृत्य देखना छोड़ उनके पास आकर बैठ गए और उन्हें चुप कराने लगे।
थोड़ी देर बाद उन बच्चों की गेंद शंभूनाथ जी के पैरों में लगी आकर के। सभी बच्चे डरते डरते वहां आए और सॉरी बोलते हुए अपनी गेंंद मांगने लगे। शंभू नाथ जी ने उन बच्चों को डाँटते हुए कहा कि एक तरफ खेलें और उनकी गेंद देते हुए बच्चों से उनका नाम पूछने लगे। सभी बच्चे अपना नाम बताया।
शंभूनाथ जी ने पूछा-" वह लोग यहां फन पार्क में कैसे आए हैं? क्या स्कूल की पिकनिक है। "सभी बच्चे बोले-"नहीं,हम सब साथ रहते हैं। आज हमारे डायरेक्टर सर और मैम हम सबको यहां घुमाने लाए हैं। "हम सब साथ रहते हैं यह सुनकर कल्पेश जी और शंभू नाथ दोनों चौंंक पढ़े क्योंकि उन सभी बच्चों उम्र में बहुत अंतर था। तभी बच्चों को ढूंढते हुए उनके संचालक वहां पहुंचे। उन्होंने बच्चों से पूछा आप सब यहां क्या कर रहे हो और हिदायत देते हुए कहा कि बीच ग्राउंड में खेलें।
शंभू नाथ जी ने पूरी घटना संचालकों को बताई। संचालकों ने सभी बच्चों से कहा कि आप इन दोनों दादाजी से माफी मांगे। सभी बच्चों ने संचालकों की बात मानते हुए उन दोनों से सभी बच्चों ने माफी मांगी।
बच्चों को माफ करते हुए कल्पेश जी बोले-" यह किस स्कूल के बच्चे हैं?" संचालकों ने कहा -"यह किसी स्कूल के बच्चे नहीं है । यह अनाथालय के बच्चे हैं । हम इनके संचालक हैं और अब इनके ही माता-पिता हैं। "
यह सुनकर कल्पेश जी और शंभू नाथ जी सन्न रह गए और सोचने लगे कि इन बच्चों में और उन में क्या अंतर है दोनों को ही घर से बेघर किया हुआ है। कल्पेश जी और शंभू नाथ जी सोचने लगे उनका अपना पोता भी इसी उम्र का होगा अब। उनकी पोती भी ऐसे ही शरारत करती होगी।
यह सोचते सोचते वह रोने लगे तो उनको रोता देखकर वृद्धाश्रम के सभी बुजुर्ग इकट्ठे हो गए। वृद्धाश्रम के संचालन भी आ गए। शंभू नाथ जी और कल्पेश जी ने अपने संचालकों और अनाथालय के संचालकों से कहा कि वह इन बच्चों के साथ कुछ समय बिताना चाहते हैं। संचालकों ने बच्चों और बुजुर्गों को आपस में हिलता मिलता देख यह निर्णय लिया कि दिन के समय दोनों बुजुर्ग और बच्चे आपस में रहा करेंगे। जिससे बुजुर्गों का अनुभव और बच्चों की क्षमता एक दूसरे से मिल सके। यह सुनकर वृद्धाश्रम के बुजुर्ग और अनाथालय के बच्चे बहुत खुश हुए क्योंकि दोनों को अपना परिवार मिल गया था।
दोस्तों, आज के समय में यह बहुत जरूरी हो गया है कि अनाथालय और वृद्धाश्रम को एक साथ जोड़ा जाए जिससे किसी बुजुर्ग को अपना बेटा, पोता-पोती मिल सके तो किसी बच्चे को अपने दादा-दादी मिल सके।