वोट की छुट्टी
वोट की छुट्टी
घर की काम वाली बाई, जिसके बिना जीवन नासूर है।रोज समय पर बुलाने पर भी ना आने वाली, आज तड़के ही घर आ गई है। काम वाली बाई के हाथ फुर्ती से चल रहे हैं। मैंने पूछा - " अरे बीना, क्या बात है , आज इतनी जल्दी में है। कही जाना है क्या ?
वह चिहुक कर बोली - "अरे मैडम जी ! आप तो जानते हैं न कि आज इलेक्सन है और वोट डालना है।"
मैं उसकी उत्सुकता को देख रही थी। उसे अपने मताधिकार के कारण स्वयं पर गर्व हो रहा था। बाई के जाने के बाद सोचा कि वोट चार बजे डालने जाऊंँगी। तभी अचानक ध्यान आया कि मुझे तो हेमा जी के यहाँ भी जाना है। सो मैंने घर को ताला लगाया और हेमा जी के घर चल दी।
मेरे पहुँचने पर मांँ - बेटी दोनो ड्राइंगरूम में मेरे पास आ बैठी। हेमा जी उठकर रसोई में गई और मेरे लिए चाय बनाकर लाई। उनको चाय लाते देख मैने पूछ लिया - "आज बहुएँ दिखाई नहीं दे रही हैं। घर में नहीं हैं क्या ? "
" वो ऐसा है कि आज छोटी बहू की बेटी का जन्मदिन है , सो सारे लोग पिकनिक मनाने गए हैं। आज इलैक्शन की वजह से छुट्टी तो थी ही। बस सबने छुट्टी का फायदा उठा लिया। बस घर पर मैं और अलका ही हैं।
'पर सरकार ने तो छुट्टी वोट डालने के लिए दी है। तो क्या आपका परिवार मतदान करने नहीं जाएगा ? मैने आश्चर्य से पूछा।
'अजी छोड़िए न बहन जी , वोट डालना कोई जरूरी है क्या। अरे एक हमारे परिवार के वोट न डालने से क्या फर्क पड़ जाएगा। कौन वहाँ भीड़ में जाकर घंटो लाइन में लगा रहे।'
" पर हेमा जी ! यह छुट्टी विशेष रूप से मतदान करने के लिए दी जाती है। हर नागरिक को अपनी वोट की कीमत को समझना चाहिये।"
हाँ, आप कह तो ठीक रही हैं। पर अब तो मैं और अलका ही घर पर हैं। चलो अगली बार देखा जाएगा।"
"आप चाहो तो हम साथ चलते है। कम से कम दो वोटों का तो घाटा पूरा होगा।"
यह कहकर मैं उठकर चल दी और रास्ते में सोचती आ रही थी कि एक मेरी वो अनपढ़ बाई है जो वोट डालने को लेकर कितनी उत्सुक थी और दूसरी ओर यह पढ़ा - लिखा परिवार है जो मतदान के महत्त्व को जानते हुए भी उसके प्रति कैसी उदासीनता दिखा रहा है।