तुम्हारा साथ
तुम्हारा साथ
आनंद ने मीरा से कहा- " पता है कल क्या है ? "
" कल क्या विशेष होगा ? कल भी सुबह उठेंगें। बच्चों को भी नींद से जगायेंगे। उन्हें तैयार करेंगे। उनका नाश्ता तैयार करके पैक करेंगे।फिर उन्हें स्कूल की बस में बैठाएंँगे। उनके जाने के बाद हम दोनों भी तैयार होंगे। हम दोनों को जल्दी होगी। भागते - दौड़ते नाश्ता करेंगे। तुम अपने ऑफिस के लिए निकलोगे और मैं अपने स्कूल के लिए भागूंँगी। "
" उसके बाद ? "
" उसके बाद क्या ! थके हारे शाम को घर आएंँगे और रात को हर दिन की आपा - धापी के बाद सो जाएंँगे , फिर अगली सुबह के लिए।"
" बस इतना ही ?"
" और कितना। वही तो होगा जो रोज होता है।"
" तुम्हारा भी जवाब नहीं ! भूल गयीं कि कल वो खास दिन है जो सारी दुनिया में प्यार करने वालों समर्पित है।"
" हाँ - हाँ ! जानती हूँ। तुम क्या कहना चाहते हो। पर प्यार करने के लिए दो लोगों की नहीं , दो दिलों की जरूरत होती है। वो कहाँ से लाओगे ? "
" वो कहीं से लाना होता है क्या ?"
" जहांँ दो लोग होते वहांँ दो दिल तो होते ही हैं।"
" मशीनों को दिल नहीं कहा करते। "
" मेरी नजरों से देखोगी तो उन मशीनों को दिल का रुतबा देते देर नहीं लगाओगी।"
" बड़े आये पहेलियों में शायरी करने वाले ! जाओ सो जाओ रोज की तरह। सुबह जल्दी उठना है।"
" कभी नदी के उस मुहाने पर गयी हो , जहाँ घने पेड़ों का झुका हुआ झुरमुट भी हो ? "
" क्या होता है वहाँ ? "
" वहां ढेर सारी पत्तियां हर दिन नीचे गिरकर इतनी घनी बाड़ बना देती हैं कि नदीं का पानी भी कुछ देर वहांँ रुककर ही आगे जा पाता है। जितनी देर रुकता है , गोल - गोल घूमता है ,सुस्ताता है , पेड़ों से बातें करता है फिर पानी के किसी रेले के साथ आगे बढ़ जाता है। "
" तो ? "
" कल भी समझ लो वैसा ही कोई पड़ाव है। चलना तो वैसे ही है , जैसे रोज चलते हैं पर थोड़ा रुककर , गोल गोल घूमकर , कुछ अठखेलन करके भी तो आगे बढ़ा जा सकता है। "
" सुनो। "
" कहो। "
" तुम जिंदगी की मुश्किल सी पहेलियों को इसी तरह आसान बनाकर मेरे साथ मेरे आखिरी दिन तक चलते रहना , ठीक है। "
"हांँ। ठीक है। बस तुम और तुम्हारा साथ ही तो। "