वो रात
वो रात
वो रात मैं कभी भूल नहीं सकती। मैं और मेरे पति रात के खाने के बाद थोड़ी देर सैर करने निकले। मौसम में ठंडक थी। रात बड़ी सुहानी लग रही थी। मेरे पति थोड़ी देर के बाद "सर्दी लग जाएगी" कहते हुए घर चलने के लिए मुड़ गए पर मेरा मन तो उस रात की चांदनी की आगोश में डूब जाना चाहता था। तभी कुछ दूर से दो तीन लोगों के दौड़ने की आवाज़ आयी। हम दोनों उस तरफ बढ़ने लगे। देखा एक पगली औरत जो अक्सर चौराहे पर पूरे दिन बैठी रहती थी, जोर से भागती हुई चली आ रही है उसके पीछे तीन चार लोग भी आ रहे थे। हमें समझते देर न लगी की मामला क्या है। जो लोग दिन में उसे कभी छेड़ कर तो कभी मज़ाक उड़ा कर मज़ा लेते थे वे ही रात में उसके साथ....।
हमें देख पास आकर वो कुछ कह कर समझाना चाहती थी जिसे हमने पहले ही भांप लिया था। मेरे पति ने जोर से ऊँची आवाज़ में पूछा-"कौन हो तुमलोग, इसका पीछा क्यों कर रहे हो?" इतना सुन सब भाग गए। मुझे उस पगली पर बहुत दया आने लगी। इतनी रात ठण्ड में वो कहाँ जायेगी। मेरे पति ने मेरी मौन की भाषा सुन ली। उन्होंने कहा-"चलो आज इसे अपने घर के पीछे सर्वेंट क्वार्टर में सुला देते है। कल की बात कल सोचेंगे।" मैंने उस रात तो उसे उन दरिंदों से बचा लिया था पर ऐसी न जाने कितनी पगली होगी जो इस सर्द रात में शिकारियों का शिकार बनने से अपने आप को बचाने में नाकामयाब हो जाती होगी।
