वो मां भारती के लाल थे ।
वो मां भारती के लाल थे ।
मतवाले आजादी के
तिरंगा ओढ़ जब सोए थे
जाति धर्म की बात ही क्या
नाम भी अनजाने थे
फिर भी वो साथ थे
हां! वो मां भारती के लाल थे।
तोड़ कर बेड़ियां गुलामी की
कोई मिट्टी तले जा सोया था
देकर आजादी हमें
कोई गंगा की बाहों में समाया था।
आजादी का वो मोल
क्यो हम तुम भूल रहे ?
क्यों रंग रक्त का हम ढूंढ रहे ?
क्यों दर्द से उसकी पहचान हम पूछ रहे ?
क्यों नामों के जंगल में हम तुम भटक रहे ?
बंधे हैं एक डोर से हम
क्या ये भी याद नहीं ?
तिरंगे के तीन रंग भी
क्या याद कुछ दिलाते नहीं ?
हर बच्चा मां को प्यारा है
क्या ये भी है कहने की बात कोई ?