Dr. Tulika Das

Others

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गुलाबी रसीद दोस्ती की

गुलाबी रसीद दोस्ती की

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उस दिन मैं बहुत खुश थी , हो भी क्यों ना , अभी दो दिन पहले तो दसवीं के बोर्ड की परीक्षा से मुक्ति मिली थी और मेरा जन्मदिन आ गया तो खुश होना तो बनता था । सुबह सुबह अपने बहनों से ढेर सारे तोहफे मिले , संयुक्त परिवार है ना मेरा । सुबह बहुत खुबसूरत बीती , तकरीबन ग्यारह बजे के आस पास मझले भैया की आवाज सुनाई दी । कहां हो तुम ,जल्दी आओ। मैं आंगन में निकल आई । हैप्पी बर्थडे - कह कर उसने एक गुलाबी मुड़ा हुआ कागज मुझे थमा दिया । मैं हैरान होकर उस मुड़े हुए कागज को देख रही थी । भैया ने कहा - खोल कर तो देखो , तुम्हारा बर्थ डे गिफ्ट है ।मेरी हैरानी बढ़ गयी और उत्सुकता से जब उस कागज को खोला तो देखती हूं कि वो तो एक रसीद थी गुलाबी रंग की , जिसमें मेरा नाम लिखा था और सबसे ऊपर किसी संस्था का नाम लिखा था । मुझे लगा अभी तो परीक्षा देकर निकली हूं फिर ये क्या? ना ना मैं पढ़ने की शौकीन रही हूं हमेशा से पर अभी थोड़ी छुट्टी के मूड में थी , और कम से कम बर्थडे गिफ्ट में ऐसा कुछ पाने की उम्मीद तो नहीं ही थी , इस से अच्छा तो एक नावेल ही दे देते । पर गनीमत थी कि अपने ये शुभ विचार जाहिर नहीं किये पर हैरानी तो मेरे चेहरे पर विराजमान थी । भैया समझ गये , कहे चलो तैयार तो हो ही साथ चलो , मां को बता कर आओ , आधे घण्टे में आ जाएंगे।

थोड़ी देर बाद ही मैं भैया के साथ उस संस्था में खड़ी थी , नाम था "कांच वीमैन इंस्टीट्यूट" , और मेरे सामने खड़ी थी मुझसे से भी हैरान एक प्यारी सी दीदी ।

ना मुझे यकीन था ना उन्हें कि ऐसा भी बर्थडे गिफ्ट हो सकता है । मूर्ति की तरह मुझे खड़ी देख कर भैया ने एक रसीद और दी सर पर , ये भी सुनने को मिला" सब भूल गई हो क्या , नमस्ते कहो अपनी मैम को ।" मैम , ऐसी यंग और‌ प्यारी मैम पहले कहा देखी थी  , ये तो एक दुबली पतली दीदी है ,मैम कहा? पर ये शब्द भी मन में ही रख लिए , सुबह से दो रसीदें मिल चुकी । पर सामने वाली शख्सियत तो अब भी सकते में थी । मुझे आज भी याद है जो पहले शब्द उन्होंने  कहे- तुम्हारा बर्थ डे है आज ? मैंने बस सिर हिला दिया । और वो हंस दी ।

मेरा नाम शालिनी है ,तुम्हारा नाम (शायद याद नहीं कर पाई) ,‌तुलिका - मैंने कहा दिया । तो परिचय हो गया ना दोनों का , अब बताओ क्या सिखना है तुम्हें- भैया।पर शालिनी दी हंस रही थी ,‌ऐसा भी बर्थडे गिफ्ट होता है पहली बार जाना , और मैं और भैया भी हंस दिये उनकी बात सुनकर , ये जाने बिना कि जिंदगी भी हमारे साथ खुलकर मुस्करा रही थी और मुझे अपनी झोली से एक अनमोल तोहफा देने जा रही थी । वो तोहफा था " दोस्ती" ।

अपने भैया को मैं जितना भी शुक्रिया अदा करूं , कम है, अगर उसने मुझे उस दिन कोई चीज दी होती तो उसकी एक उम्र होती जिसके बाद वो नष्ट हो जाती पर जो मुझे मिला वो आज भी साथ है और हमेशा रहेगा । ओह मैं आगे बढ़ गई, पीछे चलते हैं। तो वो थी हमारी पहली मुलाकात ।

अगले दिन से मैं वहां जाने लगी आर्ट एण्ड क्राफ्ट सीखने । कुछ दिनों बाद शालिनी दी की छोटी बहन शिल्पी दी भी आ गई ।बस फिर क्या था हम थे और हमारी दोस्ती । शालिनी दी कुकिंग क्लासेस में नये - नये पकवान बनाती और स्वाद हमारे रिश्ते में आने लगा । शिल्पी दी पेंटिंग सिखाती , मैं रंगोली बनाती और जिंदगी हमें रंग रही थी । इन रंगों ने हमें बांध दिया , जितने भी पल वहां मैंने बिताए , मैंने बहुत कुछ सीखा ,और हर दिन के साथ हम तीनों का रिश्ता मजबूत होता गया । मैं पहले तीन घंटे के लिए जाती थी , फिर पता चला कि इंस्टीट्यूट का ताला तीनों साथ खोल रहे हैं और साथ ही बंद कर रहे हैं । ये दोस्ती हमारे साथ हमारे घरों तक आ गई । त्योहार का मजा तभी आता जब हम साथ होते, एक दिन ना मिलो तो लगता कुछ खो गया है । समय के अंतराल के साथ साथ हम तीनों की शादी हो गई । एक दूसरे की शादी हमें खुशी तो देती थीं पर एक डर भी पास आ जाता था , सबसे सुना था कि लड़कियों की दोस्ती की दहलीज उनके मायके तक ही होती है , पर हमारी दोस्ती ने हमारे साथ ही ससुराल में गृहप्रवेश किया । हम अलग-अलग शहरों में चले गये, पर हमारा मन एक दूसरे के साथ रहा । साल में एक आध बार ही मिलते हैं पर हमारे बच्चे भी हमें अपनी मासी ही जानते है । आज चौबीस साल की हो गई है ये दोस्ती पर इसका गुलाबीपन आज भी उतना ही गुलाबी है जितना उस गुलाबी रसीद का था ।वो‌ उपहार जो उस गुलाबी रसीद में लिपट कर आया था , मेरे जीवन का सबसे सुंदर उपहार है जो आज भी मेरे साथ है । मेरे भैया तुम्हारा शुक्रिया इस तोहफे के लिए । वो गुलाबी रसीद दोस्ती की रसीद बन गई 


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