Tulika Das

Classics Inspirational

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Tulika Das

Classics Inspirational

वादा बेटी से

वादा बेटी से

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क्या हुआ आज दरवाजा खोलने में इतनी देर कर दी - उन्होंने पूछा।

हां ! पता नहीं सुबह से पेट में बहुत तेज दर्द है और अभी तो इतना ज्यादा है दोपहर से कि मुझे ठीक से उठा नहीं जा रहा - मैंने कहा।

चलो डॉक्टर के पास चलते हैं।और थोड़ी देर बाद डेढ़ साल की बेटी रिद्धि और अपने पति के साथ मैं डॉक्टर के केबिन में मौजूद थी। डॉक्टर ने मेरा निरिक्षण किया और कहा कि बधाई ! तुम मां बनने वाली हो।

क्या आप सच कह रही है ? - मेरे मुंह से निकला।डॉक्टर ने नर्स को बुलाया और प्रेगनेंसी किट से टेस्ट करवाया मेरा। दो पल के बाद ही परिणाम हमारे सामने था। उन दो गुलाबी लकीरों ने मुझे हैरत में डाल दिया। तब कहां जानती थी कि ये लकीरें इस बार मां बनने के अनुभव के अलग भी मेरी पूरी जिंदगी बदलने वाली है।

ये खबर इतनी अप्रत्याशित थी कि मैं हैरान रह गई। मां बनना खुशी का अनुभव देता है पर मैं उस वक्त इस खबर की उम्मीद नहीं कर रही थी, इस खबर ने मुझे सकते में डाल दिया था, मैं अपनी ही खुशी पूरी तरह से महसूस नहीं कर पा रही थी। यह खबर सुनकर मैं हैरान रह गई थी। एक अहसास मेरे वजूद में, मेरे अंदर, मेरी कोख में धड़क रहा था और एक अहसास, मेरे वजूद का टुकड़ा मेरी गोद में मेरी बेटी बन कर खेल रही थी।

डॉ ! मै फिलहाल तो दूसरा बच्चा नहीं चाहती , मतलब कैसे करूं मैं ? आप देख रही है ना मेरी बच्ची अभी बहुत छोटी है। मैं कैसे संभालूंगी सब ? मैं ? आप समझ रही है ना ? - मैंने कहा।

देखो मैं समझती हूं पर तुम समझो, तुम्हारी प्रिवियस मेडिकल कंडीशन को देखते हुए मेरी सलाह है कि तुम इस बच्चे को जन्म दो, अगर तुम दूसरा बच्चा चाहती हो तो। और वैसे भी जब तक ये आएगा, तब तक तुम्हारी बेटी थोड़ी और बड़ी हो जाएगी। क्या तुम इसे नहीं चाहती ?  उनके इस सवाल ने एक पल में फैसला कर दिया।

मैंने डॉक्टर से पूछा कि इतना दर्द किस लिए है,पहली बार तो ऐसा कुछ हुआ नहीं था ; तो उन्होंने कहा कि हो सकता है कि आपके पास छोटा बच्चा है, आप उसे गोद में लेती है चलती फिरती है, तो दर्द हो सकता है। आप कुछ दिनों तक दवाइयां ले और फिर देखते हैं क्या होता है आगे।

मैं घर आ गई,‌पर कहीं ना कहीं चिंता तो मैंने अंदर थी कि मैं कैसे यह सब करूंगी। यहां पर मेरे और इनके अलावा कोई नहीं था मेरी देखभाल के लिए। कुछ दिनों बाद मेरा दर्द बढ़ने लगा,मेरी तबीयत बिगड़ने लगी। उन्होंने कहा कि डॉक्टर से बात करते हैं। मैंने डॉक्टर को फोन किया और यह सारी बातें बताई। डॉक्टर ने कहा कि तुम्हें आराम की जरूरत है जो तुम्हें नहीं मिलता है तो दर्द कैसे ठीक होगा।

इन्होंने यह सारी बातें सुनकर कहा  - ऐसा करो घर चली जाओ, मम्मी के पास चले जाओ और वैसे भी जाना ही था मेरी बहन की शादी थी ‌।

मैं घर चली गई पर आराम के बावजूद हालात नहीं सुधरे, मेरा दर्द बढ़ता रहा और मेरी तबीयत भी खराब होने लगी ।

मैंने वहां के लोकल डॉक्टर को दिखाया और उन्होंने अल्ट्रासाउंड की सलाह दी। मैं अल्ट्रासाउंड करा कर उसकी रिपोर्ट डॉक्टर के पास ले गयी। डॉक्टर के पास मै सिर्फ अपनी बेटी के साथ ही गई थी, कि मुझे हमेशा से ही अकेले काम करने की आदत रही है ।

डॉक्टर ने रिपोर्ट देखा और मुझसे पूछा कि कौन है तुम्हारे साथ ?

मैंने कहा - मैं अपनी बेटी के साथ ही आई हूं और कोई नहीं है । मैंने उनसे कहा - क्या बात है ? आप मुझे बताइए। उन्होंने कहा - नहीं कुछ खास नहीं ; दवाइयां दे रही हूं आराम आ जाएगा तुम्हें और अगली बार आना तो किसी को साथ लेकर आना। छोटे बच्चे के साथ ऐसी अवस्था में अकेले आना ठीक नहीं । ध्यान रखना अपना।

मैं अपनी बेटी को लेकर मेडिसिन शॉप पर गई और उनसे कहा कि आप मुझे 15 दिन की दवाइयां दे दीजिए। वह दुकान हमारे एक परिचित अंकल की थी । उन्होंने पर्चा देखा और कहा कि एक इंजेक्शन तो तुम्हें अभी लेना है, एक अगले हफ्ते लेना है और बाकी दवाइयां मैं दे देता हूं। मैंने कहा कि मुझे तो डॉक्टर ने बताया नहीं कि कोई इंजेक्शन देना है।

इसमें तो वही लिखा है।

मैंने कहा - ठीक है अंकल तब लगा दीजिए।

मैं अपनी छोटी सी बेटी के चलते अपनी अवस्था को नहीं संभाल पा रही थी, न हीं मैंने अपनी रिपोर्ट खुद देखी थी, शायद देखती तो मुझे कुछ समझ में तो आ जाता और न हीं मैंने उन दवाइयों पर गौर किया कि जो डॉक्टर ने मुझे दी थी क्योंकि यह आम प्रेगनेंसी में चलने वाली दवाइयां नहीं थी।आप बिल दे दीजिए , कितना हुआ ? - मैंने कहा।

5000 - जवाब मिला।

5000, कितने दिन की दवा दे दिया आपने ? उन्होंने तो 15 दिन बाद ही बुलाया है- मैंने पूछा।

बेटा यह साधारण दवाइयां नहीं है और यह सिर्फ 8 दिनों की ही मैंने दी है तुम घर जाओ और अगली बार मम्मी के साथ आना डॉक्टर के पास - अंकल ने कहा।

मैं घर चली आई,दवाइयां लेने से मुझे थोड़ा आराम आ गया। मैं 2 - 3माह वहां रही और चार बार डॉक्टर के पास गई, और डॉक्टर ने मुझे सिर्फ इतना ही बताया कि मेरी प्रेगनेंसी आम प्रेग्नेंसी की तरह नॉर्मल नहीं है ,पर बहुत परेशानी की बात भी नहीं है । उन्होंने मुझसे पूछा की मैं डिलीवरी कहां करवाऊंगी। मैंने कहा कि मैं अपने ससुराल कोलकाता जा रही हूं, वही होगी ; तो उन्होंने कहा कि हां फिर तो कोई दिक्कत नहीं है तुम्हारे लिए यही सही रहेगा।

मैं कोलकाता आ गई अपनी ससुराल और यहां पर इंतजार कर रहा था एक पूरी तरह से बिखरा हुआ घर ,क्योंकि सामान अभी अभी दिल्ली से आया था और वह बिल्कुल अनपैक्ड था।

उस अवस्था में एक छोटी सी बच्ची के साथ घर का काम करना और घर को रिअरेंज करना ,पैकिंग खोलना यह सब मेरे लिए बहुत दुष्कर कार्य था। मैं दिन भर के बाद इतना थक जाती थी कि मुझे थकान के बावजूद नींद नहीं आती थी, मेरी तकलीफ अचानक से बढ़ गई ,मेरा दर्द भी अचानक से बहुत बढ़ गया। मैं गई अपने डॉक्टर के पास जिनके पास मेरी पहली बेटी भी हुई थी , उन्होंने मेरी रिपोर्ट देखी मुझे तुरंत दोबारा अल्ट्रासाउंड के लिए कहा और जब अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट आया, तो उस दिन भी मैं अकेली ही गई थी अपनी बेटी के साथ । उन्होंने भी वही सवाल पूछा कि तुम अकेली आई हो कोई साथ नहीं आया ?

क्योंकि मेरे पति दिल्ली में ही थे । मैंने कहा - नहीं आप बताइए क्या बात है ? मुझे ही सब हैंडल करना है।

उन्होंने कहा कि तुम्हें वहां के डाक्टर ने कुछ बताया है ?

मैंने कहा - कुछ नहीं बताया आप बताइए ना क्या बात है? उन्होंने कहा - बेहतर होता कि मैं तुम्हारे पति से बात करती पर तुम्हारा जानना भी जरूरी है। दरसल तुम्हारी प्रेगनेंसी नॉर्मल नहीं है, यह बहुत क्रिटिकल कंडीशन है और आमतौर पर ऐसे केस में जान का खतरा रहता है, बच्चा बच भी जाए तो मां के बचने के चांसेस बहुत कम होते हैं।

इन शब्दों को सुनकर मैं थोड़ी देर के लिए सन्न रह गई। मुझे समझ में नहीं आया मैं कैसे रिएक्ट करूं ? डर ये नहीं था कि मुझे जान का खतरा है, डर ये था कि जो मेरी गोद में खेल रही है मेरी तकरीबन 2 साल की छोटी सी बच्ची ,मुझे कुछ होगा तो उसका क्या होगा या उसका जो इस दुनिया में आ जाएगा दो बच्चे बिन मां के कैसे ? मैं इसके आगे की सोच नहीं पाई , हिम्मत ही नहीं कर पाई सोचने की।

बहुत ताकत लगाकर मैंने यह कुछ सवाल पूछे कि- अगर ऐसा था तो डॉक्टर ने पहले क्यों नहीं बताया, हम सेकंड ऑप्शन पर विचार करते, एक को लाने का क्या मतलब है जब मैं ही नहीं रहूंगी तो फिर मेरी इस बच्ची का क्या होगा ? डॉक्टर ने कहा कि गलती उनकी नहीं है, तुम्हारे केस में अबॉर्शन नहीं संभव था, तब भी वही खतरा रहता जो अब है इसलिए उन्होंने तुम्हें कुछ नहीं बताया।

मैं समझा नहीं सकती शब्दों में कि किस तरह की भावना थी। मैं रोना चाहती थी पर मैं रो नहीं पा रही थी। मैं सवाल पूछना चाहती थी कि मेरे साथ क्यों ? पर मैं किस से पूछती? और मैंने अपनी नन्ही सी बेटी को देखा , मैंने कहा कि नहीं मुझे रोना नहीं है और मुझे कुछ नहीं होगा। मैंने डॉक्टर से कहा- आप निश्चिंत रहिए, मुझे कुछ नहीं होगा।

मुझे एक पल धक्का लगा जरूर, पर मैं अगले ही पल खुद को संभाल चुकी थी और यह ताकत मुझे मेरी छोटी सी बच्ची ने दी थी , वह बच्ची जो मेरी गोद में खेल रही थी और वह जो मेरे अंदर पल रही थी।

मैं घर आई और और मैंने इस ख्याल को अपने दिमाग से निकाल दिया कि मैंने ऐसा कुछ भी सुना है और इसमें सबसे बड़ी मदद मेरी बेटी ने की। वह मुझे दिनभर इतना उलझाए रखती कि मैं इस बारे में सोच ही नहीं पाई कि मैं किसी खतरे के बीच में हूं।

डॉक्टर ने मुझे बेड रेस्ट कहा था ; बेड रेस्ट तो दूर की बात मुझे तो साधारण सा रेस्ट भी नहीं मिलता था क्योंकि सारे काम मुझे ही करने होते थे और उस पर से उस छोटी सी बच्ची की देखभाल ; पर मेरी छोटी सी जान मेरी कितनी बड़ी ताकत है, यह मैं धीरे-धीरे जानने लगी।

धीरे-धीरे समय नजदीक आने लगा। मेरे पति लौट आए दिल्ली से। मैं उन्हें लेकर डॉक्टर के पास गई और उन्होंने सारी बातें बता दी। खबर सुनकर वह भी सकते में आ गए नाराज भी हुए  मुझ पर कि तुमने पहले क्यों नहीं बताया ?मैंने कहा कि मैं बता सकती थी पर बताने का कोई मतलब नहीं बनता था क्योंकि आप आ नहीं सकते थे।

यह पूरा दौर जो 9 महीने में बीता, यह बहुत कठिन दौर था मेरे लिए क्योंकि इस दौरान एक वक्त ऐसा भी आया जब मुझे अपनी बेटी की जिंदगी के लिए भी जूझना पड़ा। तकरीबन 1० - 15 दिन मैं उसे लेकर हॉस्पिटल में रही पर वह बात फिर कभी बताऊंगी।

इस दौरान कई बार मेरा अल्ट्रासाउंड हुआ और जब भी अल्ट्रासाउंड होता, उसकी रिपोर्ट मुझे परेशान कर देती। उसमें मेरे लिए कोई अच्छी खबर नहीं होती थी।

चाहते ना चाहते भी थोड़ी तनाव में रहने लगी थी। खास तौर से बेटी की बीमारी के बाद से मेरी चिंता अचानक बढ़ गई थी, मैं रातों को सो नहीं पाती। उठ उठ कर अपनी बेटी को देखती, उसे चूमती और अपने सीने से लगा लेती। और मेरे अंदर सब कुछ दरकने लगता।

मैंने पहली बार ईश्वर से अपनी जिंदगी के लिए प्रार्थना की। मैं अब अपनी जिंदगी चाहती थी, अपने बच्चे के लिए, पर मेरी सारी रिपोर्ट मुझे उस सच के सामने ला पटकती जिसे मैं देखना भी नहीं चाहती थी।

समय नजदीक आ गया। एक हफ्ते पहले मेरे मां-बाबा मेरे पास चले आए और मैंने उन्हें सारी बातें बता दी । उन्हें तब तक ये बातें नहीं पता थी, क्योंकि मेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती थी तो मैं उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी, इसलिए कुछ बताया नहीं था पर अब बिना बताए कोई चारा नहीं था।

घर में एक अनदेखा सा तनाव था। उसी माहौल में मेरी गोद भराई की रस्म भी हुई जो मैंने अपनी बेटी को गोद में लेकर पूरी की।

इस पूरे वक्त में मैंने बहुत कोशिश की कि मेरी बेटी दूसरों के हाथ से खाना खा ले, अपने पापा के पास खा ले, अपनी दादी के पास खा ले, मैं चाहती थी कि उसे थोड़ी आदत पड़ जाए मेरे बिना रहने की, पर वह मेरे बिना मानती नहीं थी और यही मेरी परेशानी की सबसे बड़ी वजह थी।

जाने कौन से ईश्वर होंगे जिनसे मैंने इस दौरान अपनी जिंदगी के लिए प्रार्थना नहीं की होगी । मैं मांगती थी कि मुझे मोहलत दे दो, पूरी जिंदगी कि ना सही, इतनी तो हो कि मैं अपने बच्चों की परवरिश कर सकूं, उन्हें जीना सिखा दूं, अपना ध्यान रखना सिखा दूं,; पर उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखती थी।

अब सिर्फ़ 4 दिन बचे थे। कल दोबारा अल्ट्रासाउंड होने वाला था ताकि पता चल सके कि मेरी स्थिति क्या है। अगली सुबह अल्ट्रासाउंड हुआ। डॉक्टर ने मेरी पिछले सारे रिपोर्ट भी देखा इस दौरान , मैंने उनसे पूछा - सब ठीक है या कोई चेंज है ?

उन्होंने कहा - सब ठीक होगा ईश्वर पर भरोसा रखो। 1 दिन बाद रिपोर्ट आनी थी और उसके अगले दिन मेरा ऑपरेशन था। मैं इतनी ज्यादा परेशानी और तनाव में थी कि मैं किसी से बात नहीं कर पा रही थी। मैंने उस रात अपनी बेटी को सुला दिया और मुझे पुरानी सारी बातें याद आने लगी अपनी बेटी का जन्म, उसका मेरी जिंदगी में आना, सब कुछ।

और तभी मुझे एक बात और भी याद आई मेरी दीदी ने एक बार बातों बातों में बताया था कि उनके यहां मां दुर्गा का एक मंदिर है, जहां मन्नत मांगने से मन्नते पूरी होती है संतान से जुड़ी हुई, पर संतान बेटी ही होती है ।

पता नहीं क्या मन में आया मेरे, उस वक्त तो वहां जाना तो संभव नहीं था पर मैंने मां दुर्गा से हाथ जोड़कर प्रार्थना कि चाहे मुझे फिर से बेटी ही दे दो  पर मुझे मेरी जिंदगी लौटा दो । जिस पर यह मांगा मैंने,मेरे अंदर से कोई बोल उठा वह तो जिस पल आया होगा उसी पल तय हो गया होगा कि वह बेटा है या बेटी है ; मां तुम किसकी बनने वाली हो और यह बातें मेरे शिक्षित दिमाग की थी। पर आज मैं कोई तर्क नहीं सुनना चाहती थी । जिंदगी में पहली बार मैंने अपने दिमाग को डपट दिया और मैंने कहा कि मुझे आज कोई तर्क नहीं चाहिए । मुझे मेरी जिंदगी चाहिए और मैं अपनी मां से अपनी जिंदगी मांग रही हूं, अपनी बच्ची के लिए।

। मैं जानती थी कि मेरे घरवाले बेटे की उम्मीद लगाए बैठे हैं क्योंकि पहली संतान बेटी है जो बहुत लाडली है सबकी।पर मुझे मेरी बेटी के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था। मुझे पता था अगर मैं नहीं रही तो वो नहीं जी पाएगी और जो आएगा वह भी नहीं जी पाएगा, इसलिए मैं कहने लगी कि मुझे बेटी ही दो और पर मुझे मेरी जिंदगी भी दे दो। और रोते रोते ही मेरी आंख लग गई।

अचानक मैंने देखा कि कोई अपने नन्हे नन्हे हाथों से मेरे चेहरे को थपक रही है और मुझे जगा रही है , वह एक नन्हीं सी छोटी बच्ची जिसका चेहरा मेरे लिए अनजान था पर जो मेरे लिए अजनबी नहीं थी, उसका स्पर्श मेरे लिए अनजान नहीं था, वह मुझे जगा रही थी और मेरी आंखें खुल गई।

मैं चौक कर उठ बैठी और अपने चारों ओर देखने लगी पर मुझे वह बच्ची नहीं दिखी ।

मेरी बेटी मेरे बगल में सो रही थी।‌ मेरे पति भी सो रहे थे। मैंने घड़ी देखा - सुबह के 3:00 बज रहे थे। मैंने इन्हें जगाया, उसी वक्त और इनसे कहा कि हमारी बेटी आ रही है। इन्होंने गौर से मुझे देखा क्योंकि यह नींद में थे, अचानक जगे थे तो समझ में नहीं आया इन्हें, कि मैंने क्या कहा। क्या कह रही हो तुम ? यह (मेरी बड़ी बेटी को दिखाते हुए) तो सो रही है यहीं पर ।

आप समझ नहीं रहे जो आने वाली है वह हमारी बेटी है मैंने देखा है उसे, वह रिद्धि की तरह नहीं है, उससे बिल्कुल अलग है सूरत में। हमारी बेटी आ रही है आप समझ रहे हैं। - मैंने कहा।

सपना देखा है कोई, सो जाओ भोर होने आई है ऐसे ही तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं , सुबह बात करते हैं, सपना ही तो है-उन्होंने कहा।

पर मैं कहीं ना कहीं महसूस कर रही थी कि यह सपना सच होने वाला है जो आ रही है मां की बेटी है तो क्या मां ने मेरी प्रार्थना सुन ली है , यह मां का कोई इशारा है मेरे लिए ? और अब मुझे अपनी रिपोर्ट का इंतजार था, रिपोर्ट आई और यह बहुत अच्छी नहीं थी, इसे अच्छा भी नहीं कहा जा सकता था ; पर थोड़ी उम्मीद मेरे अंदर कहीं ना कहीं जगह बना चुकी थी।

उसके अगले दिन मैं सुबह उठी अपनी बेटी को नहला कर खिलाया पिलाया और जब मैं उसे खिलाकर अपनी मां की गोद में दिया और मैं जाने लगी तो मैंने कहा - ममा अभी नहीं आएंगी आपके पास, आप खा लेना दीदा के पास। तुम खाओगी ना ?

मेरी बच्ची ने लपक कर मुझे पकड़ लिया। मेरे गले में अपनी बाहें डाल दी और मुझसे कहा - मैं नहीं खाऊंगी, मुझे खाना तुम आकर खिलाओगी और वह मुझे छोड़ने को बिल्कुल तैयार नहीं हो रही थी। मैं रो पड़ी, वह भी रो रही थी।

मैंने कहा अगर तुम अच्छी बच्ची बनी और दीदा को तंग नहीं किया, रात को खाना खाकर गुड गर्ल् बन कर सो गई तो ममा जल्दी आएंगी और तुम्हें खुद खिलाएंगी।

उसने कहा - प्रॉमिस ?

प्रॉमिस - मैंने कहा और यह प्रॉमिस कहना मेरे लिए कितना जरूरी था, उसके लिए कितना जरूरी था, सिर्फ मैं समझ सकती हूं । मैंने अपनी बच्ची को अपने सीने से लगा लिया और कहा मैं लौट कर आऊगी, आपको खाना भी खिलाऊंगी और जब मैं लौट कर आऊंगी तो मेरे साथ एक छोटी सी गुड़िया होगी तुम्हारे लिए, जो तुम्हारे साथ खेलेगी।

और मेरी यह बात सुनकर खुश हो कर उसने कहा - तुम मेरे लिए गुड़िया लाओगी ना ; पक्का ?

और मैंने कहा - पक्का।

और शायद इसी वादे ने और मेरी प्रार्थना ने मेरी जिंदगी को बांध दिया , वह जिंदगी जो मेरे हाथों से छूट रही थी।

मैंने मां की गोद में उसे दिया उसका माथा चूमा और हॉस्पिटल से निकल गई।

आपरेशन के दौरान जब मेरी बेटी का जन्म हुआ तो मैंने डॉक्टर से पूछा कि डॉक्टर बेटी है ना ?

वह हंस दी, उन्होंने कहा - तुम्हें कैसे पता कि बेटी ही है ? तुम्हारी तो पहली बेटी है। लोग तो आमतौर पर बेटा है कि नहीं , ऐसा सवाल पूछते हैं ।

मैंने कहा - मैं जानती हूं कि ये बेटी ही है। आप उसे मुझे दीजिए। मैं उसे देखना चाहती हूं।

जो वहां एनेसथिसिया और पेडियाट्रिक्स के डॉक्टर थे , वो लोग हंस पड़े।सब्र करो, अभी तुम्हें स्टिच नहीं लगे हैं, अभी तुम्हारा ऑपरेशन पूरा नहीं हुआ है, सिर्फ बच्ची का जन्म हुआ है ।तुम उसे गोद में नहीं ले सकती।

मैंने कहा - आप गोद में मत दीजिए, पर उसका चेहरा मुझे दिखा दीजिए। मैं देखना चाहती हूं।

पेडियाट्रिक्स के डाक्टर मेरी बातें सुनकर जब मेरी बच्ची को मेरे पास ले आए,उसका चेहरा मेरी गालों से हल्के से स्पर्श करवाया और उसे जरा ऊंचा करके ,उसका चेहरा मुझे दिखाया तो मैं हैरान रह गई यह वही बच्ची थी जो मुझे रात को जगा रही थी।

एक तकलीफदेहअनुभव के बाद मुझे मेरी जिंदगी वापस मिल गई। मेरी बच्ची अपने साथ-साथ मेरी जिंदगी भी ले आई। इन हालातों में बचकर निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं था। क्यों ?

जानते हैं क्योंकि जिस दिन जिस पल मेरा आपरेशन हुआ, उसी पल , मेरी जैसी ही एक और केस भी,  मेरे ही साथ ऑपरेट हुआ था। जुड़वा बेटे हुए थे, पर मां अपने बच्चों को देख भी नहीं पाई, लंबी दुआओं के बाद उस मां की कोख भरी पर  अपनी बच्चो की शक्ल देखने से पहले ही अपनी आंखें बंद कर ली ।

मैं बता नहीं सकती कि मुझे क्या महसूस हो रहा था जब मैंने यह खबर सुनी क्योंकि वह दोनों बच्चे मेरी बच्ची के ठीक बगल में सोते थे । मैंने देखा है दोनों बच्चों को, अपनी गोद में भी लिया है , अपना दूध भी पिलाया है क्योंकि उन्हें मां के दूध की जरूरत थी और उनकी मां उस वक्त होश में नहीं थी। उसके पिता की हालत बहुत खराब थी और वो मां हमेशा के लिए सो गयी। आज भी उन बच्चों की याद मुझे बेचैन कर देती है।

मैं अपनी बेटी के पास वापस जा रही थी अपनी बच्ची के साथ , इस बात की मुझे खुशी थी , पर जाने क्यों वह दो बच्चे और उसकी मां जिसे मैंने देखा तक नहीं था, कोई रिश्ता भी नहीं था , उनका नाम तक मैं नहीं जानती थी फिर भी उनके दर्द को मैं आज भी महसूस कर सकती हूं। जिस पल उस मां के चिरनिंद्रा की बात सुनी, उस पल ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर से कुछ टूट कर कहीं गिर गया, कुछ मेरा ही कहीं खो गया और मुझे आज भी यह चुभन महसूस होती है।

इस चुभन को लेकर मैं एक मां आज अपनी दूसरी बच्ची को गोद में लेकर वापस घर आ गई मेरी बेटी के पास , जिसके वादे से मेरी सांसें बंधी थी। मेरी मां ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी । कौन कहता है कि चमत्कार नहीं होता , चमत्कार होते हैं , मैं, मेरी दोनों बेटियां इसका प्रमाण है।

ईश्वर ने जैसी दया हम पर की, हमारे परिवार पर की, सब पर करें, इसी प्रार्थना के साथ आज अपनी वाणी को विराम देती हूँ।


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